वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

संविधान के दायरे में रह कर ही हो किसी भी धर्म का प्रचार
(आशीष कुमार आशी)
हमारे देश का संविधान किसी भी धर्म को मानने की आजादी देता है , और इसका वर्णन भी भारतीय संविधान मे उल्लेख किया गया है ।भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अपने नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। यह अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है। परन्तु ये अनुच्छेद राज्य को किसी भी प्रकार के धर्म के प्रचार और प्रसार की इजाजत नहीं देता और न ही सरकारों को व्यक्तिगत आस्था और धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है , परन्तु आज आप सभी के समक्ष है की अयोध्या मे किये जा रहे राम मंदिर के उदघाटन समारोह मे चाहे केंदर की सरकार हो या फिर उतर प्रदेश की राज्य सरकार निरंतर संविधान की धज्जियाँ उड़ा कर इस धार्मिक आयोजन को एक सरकारी कार्यक्रम और सरकार की उपलब्धि के रूप मे पेश कर रहे है
भारत एक ऐसा देश है जंहा विश्व के सभी धर्मो को स्वीकार किया जाता है यंहा विश्वभर मे सबसे ज़्यादा भाषाये बोलने वाले और धर्म मे आस्था रखने वाले लोग रहते है यंहा राज्य मे भी अलग अलग भाषाएँ और रीतिरिवाज को अपनाने वाले लोग मिल जाएंगे जिनका हमेशा धर्म और अपनी आस्था के साथ रहने की भारत का संविधान इजाजत देता है । परन्तु पिछले कुछ वर्षों से आहिस्ता आहिस्ता हमारे देश की राजनीति मे धार्मिक हस्तक्षेप होना शुरु हो गया और ये मिश्रण एक तरफा नहीं रहा बल्कि धर्म और राजनीति एक दूसरे मे इतने घुल मिल गये की ये धार्मिक कटरता का सवरूप धारण कर चुका है और इसके चलते देश मे कई धार्मिक उन्माद देखने को मिले है जिससे न केवल आम जनता ने नुकसान उठाया है बल्कि गंगा जमुनी तहजीब की जो दुहाई भारत के लिए दी जाती रही है वह भी कंही न कंही धूमिल हुई है । जिस देश की सभ्यता को पूरे विश्व मे आपसी भाईचारे के लिए एक मिसाल बताया जाता रहा है आज उस देश के अंदर ही राजनेताओं दवरा अपने राजनैतिक फायदे के लिए धर्म के नाम पर एक दूसरे के धर्म से खतर बता कर उकसाया जा रहा है और धार्मिक हिंसाओं को बढ़ावा दे कर ध्रुवीकरण की राजनीति की जा रही है । सही शब्दों मे कहें तो आज के नेताओं ने राजनीति को धर्म मे और धर्म गुरुओं ने धर्म को राजनीति मे इस कदर उलझा दिया है की इसके नाम पर सरकारें बनाई जा रही है और गिराई जा रही है । धार्मिक कटरटता देश के लोगों पर खास कर युवाओं पर इस कदर हावी हो गई है की वे भूल गये है की आज उनका बुनियादी प्रश्न क्या है ।
*बुनियादी समस्याओं से ध्यान भटकाने की है राजनीति*:----
धर्म के नाम पर राजनीतिनि इस कदर हावी हो गई है की देश का युवा , मेहनत कश , महिला वर्ग अपने बुनियादी प्रश्नों और अधिकारों से बेमुख हो कर सिर्फ और सिर्फ नाम जाप जपने लगे है। 22 जनवरी को राम मूर्ति मे प्राण प्रतिष्ठा की जानी है इसलिए पूरे देश मे एक अभियान चला है की किस तरह आयोध्या मे राम मंदिर बनने से आम जन की हर समस्या हल होने वाली है , राम राज्य के सपने दिखा कर सत्ता मे आई सरकार सिर्फ राम मंदिर को ही विकास का प्रतिबिम्ब के रूप मे पेश कर रही है ,
अब प्रशन ये उठता है की क्या मंदिर निर्माण ही राम राज्य की परिकल्पना है या इस परिकल्पना के पीछे देश के बुनियादी और महत्वपूर्ण प्रश्नों को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है।युवाओं को करोड़ों के रोजगार देने की बात कह सत्ता मे आई मोदी सरकार से जंहा रोजगार के संदर्भ मे युवाओं को सवाल करने चाहिए वंही देश का युवा मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण मे उलझा पड़ा है. युवा भूल गया है की भारत भी बेरोजगारी की लिस्ट में शामिल है. आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी दर के हिसाब से दुनिया में पांचवें नंबर पर हैं इसके इलावा
साल 2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स की लिस्ट जारी हुई है. इस लिस्ट में भारत को न सिर्फ 125 देशों में से 111वां स्थान मिला है. बल्कि 28.7 स्कोर के साथ भारत में भुखमरी की स्थिति को गंभीर भी बताया गया है. एन सी डब्ल्यू के अनुसार घरेलू हिंसा मे भारत मे पिछले साल 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है , मजदूर वर्ग के रोजगार चले गये है सभी खुशहाल होंगे जो ऐसी कल्पना राम राज्य मे की। जा रही है वे मात्र मंदिर निर्माण से सम्भव नहीं है जबकी सरकार को संविधान के दायरे मे रह कर ही धर्म का प्रचार करना चाहिए।
*राम के नाम पर शासन करने वाले देश मे दलितों और महिलाओें के उत्पीड़न पर खामोश क्यों रहते है*
वैसे तो राम राज्य की कल्पना एक सभ्य और खुशहाल शासन व्यवस्था के रूप मे प्रभाषित की जाती रही है परन्तु यदि रामायण का अध्ययन किया जाए और उसके कुछ प्रसंगों को देखा जाए तो मौजूदा समय मे देश का दलित और महिला कभी भी ऐसे राम राज्य की कल्पना नहीं करेंगे वाल्मीकि रामायण में सात कांड हैं। सातवां यानी अंतिम कांड है ‘उत्तरकांड’। इसके 73 से 76 सर्ग तक एक कथा मिलती है। इन्हे पढ़कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की न्याय-पद्धति पर न केवल सवाल उठते हैं, बल्कि उनके आचरण को संदेह और भेदभाव की दृष्टि से भी देखा जाता है। उत्तरकांड की यह कथा सीता के परित्याग के बाद की है और अयोध्या में स्थापित ‘राम-राज्य’ के समय से जुड़ी है। ‘राम-राज्य’ को ऊपरी तौर पर देखें तो इसका अर्थ राम के राज्य का शासन-काल से है परन्तु इस अंतिम कांड मे जब शंबुक जिसकी हत्या राम दवरा इसलिए कर दी जाती है की वह एक शूद्र था और उसने शिक्षा ग्रहण कर ली और सीता का त्याग करना दलित विरोधी और महिला विरोधी मानसिकता को दर्शाता है ऐसे बहुत से उदहारण रामायण कांड मे मिलते है जिनसे राम राज्य के कल्पना जो की जा रही है वे आज के समय मे जो देश के संविधान मे दलित महिलओ को आगे बढ़ने के अधिकार दिये गये है उन पर अंकुश लागने का प्रयास भी हो सकता है । इसलिए देश की सरकारों का इस तरीके से धार्मिक क्रियाकलापों मे हस्तक्षेप करना सरकार का किसी एक धर्म के प्रती झुकाव को दर्शाता है जिसकी भारत का संविधान इजाजत नहीं देता इसलिए संविधान के दायरे मे रह कर ही धार्मिक आयोजनों का प्रचार करना चाहिए।
अगर राम राज्य के इतिहास और न्याय पद्धति को देखें तो आज भी मौजूदा समय मे भी कई शंबुक मारे जा रहे है और अपमानित किये जा रहे है ,और कई महिलाएँ ऐसी है जिनको अपने अधिकारों और अपनी मांगे मनवाने के लिए राम के नाम पर राजनीति करने वाले इन लोगों से खुद को बचाना मुश्किल हो गया । अगर आप इसके उदाहरण देखंगे जिसकी लम्बी सूची है , आप रोहित वैमूला से लेकर न दर्शन सोलंकी जैसे कितने ही छात्रों को मरने पर मजबूर किया गया है ऐसे न जाने कितने रोहित वैमूला और दर्शन सोलंकी होंगे जिनकी राम को मानने वाले पाखंडियों ने मरने को मजबूर कर दिया माध्यप्रदेश के अंदर दलित युवक पर पेशाब की घटना और न जाने कितनी हि घटनाए दबी रह जाती है आज या तो राम राज्य की परिकलपना करने वाले नही जानते की राम राज्य की परिकल्पना क्या है ।यदि जानने के बाद भी ये सब हो रहा है तो शायद वे इस तरह के हि राम राज्य की स्थापना करना चाह रहे होंगे ये प्रश्न मात्र दलितों का हि नहीं है बल्कि महिला पहलवानों के साथ की घटना , और हाथरस की घटना को आप सभी बेहतर तरीके से समझते है। आज देश के अंदर जब मौजूदा समय से विश्व का सबसे बेहतरीन संविधान है , जिस संविधान मे सबको समता का अधिकार दिया है। , जब उसके पश्चात भी हमारे देश मे इतना शोषण और असमानता विद्यमान है , तो इस समय मे हमको मनु पर आधारित राम राज्य की कल्पना नहीं बल्कि देश मे निर्मित संविधान और संविधान मे निहित संविधान की प्रस्तावना के आधार पर शासन व्यवस्था कायम करने के लिए कार्य करना चाहिए। राम मंदिर एक धार्मिक मसला है , इसलिए इसको मात्र धर्म तक हि सीमित रखना चाहिए क्यूंकि शासन व्यवस्था देश के अंदर मौजूदा संविधान के अनुरूप ही होनी चाहिए
लेखक दलित शोषण मुक्ति मंच हिमाचल प्रदेश के राज्य सह संयोजक और सीटू जिला सिरमौर महासचिव है
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