वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

आखिर क्यों पूरा नही हो पा रहा है बाबा साहब का सपना:-----आशीष कुमार आशी

आज जब लोक सभा का चुनाव है इस ही चुनाव के दौरान हम बाबा साहब की 128 वां जन्मदिन मना रहे है। आज के दिन खास कर इस बार हर दल अम्बेडकर जी के सपनो का भारत बनाने की कोशिश करंगे और बेशुमार वायदे भी करेंगे,ऐसा लाजमी भी है, परन्तु चुनाव के इतने शोर शराबे में ये भी लाजमी है कि हम मौजूदा सरकार ने सवाल भी खड़े नही करेंगे, आज के दिन हम उन लोगों को भी अम्बेडकर जयंती में मालार्पण करने बुलाते है जिनको इन देश के संविधान से कोई खास लगाव नही  अपितु वह लोग हर जगह संविधान की धज्जियां उड़ाते रहते है।  जाने अनजाने हम किसी न किसी रूप में  उन लोंगो को ही  बढ़ावा दे रहे है जो कि अम्बेडकर जी के विचारों से कोई वास्ता नही रखते थे या ऐसा कह सकते है  बाबा साहब की विचारधारा से विपरीत थे, मुझे यँहा विचारों की क्या विषमताएं है  कुछ पंक्तियन का जिक्र यँहा करने जा रहा हूँ में यँहा कहते हुए बिल्कुल भी असहज महसूस नही कर रहा हूँ कि मार्क्सवाद में  और वर्ग संघर्ष से देश मे अवसर की समानता पैदा की जा सकती है, अगर हम थोड़ी देर के लिए भगत सिंह और सावरकर के विचारों को देखे तो आप स्वयं समझ  जाएंगे कि  विचारधारों में ही शोषण के विरुद्ध लड़ने की मंशा होती है और व्यवहारिक रूप से जब आप इन समाज में आगे बढ़ते रहते है तो उसका प्रतिबिम जरूर आपको नजर आने लगता है ,परन्तु हम तब तक किसी विचार के इतने गुलाम हो जाते है कि हम अपने शोषण को समझ ही नही पाते ,या यूं समझ लो कि हम अंधभक्त हो जाते है। यँहा विचारों में  अंतर देखिए।

भगत सिंह:--भगत सिंह जी जब वर्ण व्यवस्था को खत्म करके अछूतों को बराबरी का हक़ देने की बात करते है तब सावरकर को जाति प्रथा में थोड़ी सी भी ढील नस्ल और खून की शुद्धता पर खतरा नजर आता है। भारत के इतिहास के  छे यशस्वी युग मे सावरकर ने लिखा है "जाति प्रथा का एक मात्र लक्ष्य अपने नस्लीय बीज और खून तथा जाति जीवन और परम्पराओं की रक्षा और उन्हें किसी भी प्रदूषण से मुक्त रखना है।  सावरकर का ये कहना कि प्रत्येक जाति चाहे वह  ब्राह्मण हो या भंगी हो, उसे अपनी  अलग पहचान पर गर्व करना चाहिए। इससे सोचो कि एक उच्च जाति के लोगों को खुद पर गर्व हो सकता है मगर शुद्र के गर्व का क्या अर्थ है? क्या वे  उच्च वर्ण की गुलामी पर गर्व करे, इससे बाबा साहब की जाति के विनाश की बात पर भी चर्चा बन्द हो जाती है,  क्योंकि यदि दोनों अपनी अपनी जाति पर गर्व महसूस करते रहे तो पूरा समाज वर्ण व्यवस्था की समस्या पर विचार ही नही कर सकता आज देश के अंदर भी जाति पर आधरित जो संगठन बने है उन्हें बिल्कुल भी इस बात का एहसास  नही की वे अम्बेडर के नाम पर ही  अम्बेडकर के विचारों की धाजियँ उड़ा रहे है,मैंने
अक्सर देखा है कि जाति पर आधारित  बने संगठनों के अन्दर भी एक नई 

पहचान बनती जा रही है,सोशल मीडिया के ग्रुप में मैने देखा कि लोग आपस मे प्रतिस्पर्धा कर रहे है आपसी प्रतिस्पर्धा लगी है कि।में किसी जाति विशेष का पक्का आदमी हूं, इनमें भी अलग नजरिया बनता जा रहा है जोकि समय के साथ बढ़ता जाएगा,  जाति पर आधरित बने संगठनों के अंदर हम लोग जाने अनजाने में अपने आप को किसी अन्य जाती से श्रेष्ठ बनाने की कोशिश करते है जोकि मनुवादी और शासक वर्ग की पार्टीयों का एक प्रायोजित एजेंडा है, 

आज तक सरकार चाहे कोई भी बने या संविधान में दिए गए प्रावधानों के अंदर चाहे कोई विधायक संसद या राष्ट्रपति बन जाये परन्तु ये सभी लोग शासक वर्ग की राजनीतिक पार्टियों के इतने गुलाम बन गए है कि कोई आवाज उठा ही नही सकते। अधिकतर मैंने अपने छोटे से अनुभव के आधार पर  देखा  की अगर कोई भी सामाजिक मुद्दों की लड़ाई हो तो सभी शोषित तपको की नजरें कम्युनिस्टों की तरफ होती है, जनता जानती तो है कि हमारी लड़ाई को अगर कोई निष्पक्ष रूप से कोई लड़ेगा तो वे सिर्फ और सिर्फ वामपंथी ही  है ,और ऐसा एक नही हजारों मसलों में देखा गया है, मेरे अपने जिला में  चाहे वो दलित महिला से मार पिटाई का  हो या फिर जिन्दान , रजत की हत्या का मामला, देखने मे ये आया कि वामपंथी नेताओं का शोषण के खिलाफ स्टैंड इतना साफ रहता है कि  वे अपनी जाति और समाज के खिलाफ भी शोषण के खिलाफ लड़ने को तैयार रहते है , अतः आज हम जब बाबा साहिब की 128 वां जन्मदिन मना रहे तो हमे ये  सोचना जरूरी है कि हम अम्बेडकर की जयंती और पुण्य तिथि तो मना लेते है परन्तु अम्बेडकर के विचारों के खिलाफ काम करते है ,  आज हम लोगों को य संकल्प लेना चाहिए कि हम जातिगत संगठनों का नाश करके उस विचार को मजबूत करने के लिए प्रतिबधता से काम करेंगे जो इस देश के अंदर बड़ रही असमानताओं को दूर करने के लिए और जाति के विनाश के लिए बिना किसी राजनीतिक लाभ के भी दलित समाज के जीवन को बेहतर बनाने को संघर्ष कर रहे है।

आशीष कुमार आशी

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