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Showing posts from September, 2025

जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

जातिगत भेदभाव: हिमाचल की सच्चाई और समाज के लिए चेतावनी:--आशीष कुमार

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 जातिगत भेदभाव: हिमाचल की सच्चाई और समाज के लिए चेतावनी — आशीष कुमार, संयोजक, दलित शोषण मुक्ति मंच, सिरमौर ______________________________ हमारे देश का संविधान हमें समानता, गरिमा और न्याय का अधिकार देता है, लेकिन 21वीं सदी में यह कैसी विडंबना है कि आज भी जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाएँ जारी हैं। देवभूमि हिमाचल में हाल ही में शिमला जिले के चिड़गांव तहसील में 12 वर्षीय मासूम सिकंदर ने जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर ज़हर खाकर अपनी जान दे दी। यह घटना न केवल एक परिवार का दुख है, बल्कि पूरे समाज और शासन व्यवस्था के लिए एक कड़ी चुनौती है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या हम वास्तव में एक समान और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या आज भी घिसी-पिटी व्यवस्था के बोझ को छुपाकर बाहर समानता का आभास दिखाया जा रहा है और सरकारी आंकड़ों में स्थिति बेहतर प्रस्तुत की जा रही है। भारत के आजाद होने से पूर्व और आजादी के बाद क्या तस्वीर बदली है, या वही तस्वीर केवल सामने से साफ दिखा कर पेश की जा रही है? 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ और संविधान बना, आज़ादी का जश्न मनाया गया, लेकिन आज भी देश में कुछ वर्ग दास्ता...

देश को फिर ग़ुलाम बनाने की तैयारी

 देश को फिर ग़ुलाम बनाने की तैयारी  लूटी गई ज़मीन , जंगल काटे गए, सपनों के बदले सौदे बांटे गए। रोटी, रोज़गार, उजाला बिक गया, जनता का हक़ फिर से छिन गया। ईस्ट इंडिया की छाया फिर से हैं मंडराई, अंग्रेजो की सत्ता फिर से हैं आई  मीडिया ने बेची कलम ओर जुबान  कार्यपालिका, न्यायपलिका का अब नहीं रहा  सम्मान, देश की संसद अब सौदों की मंडी हो गई  असली मुद्दे गौण हुए ओर धर्म में जनता अंधी हो गई  बिजली के खंभे भी गिरवी रखे गए   हरियाली का गला घोंट जंगल पूंजीपतियों  को बाँटे गए  स्कूल और अस्पतालो की अब नीलमी  की बारी है, अमीरो को छुट गरीबों की लूट जारी हैं l अब तय करने की ये हम सब की बारी  है न बिकेगी ये ज़मीन , न बिकने देंगे आसमान, जनता ही तय करेगी अपना संविधान।    #आशीष कुमार आशी#

इंकलाब हो जाये

 लफ़्ज़ों से आग निकले, मोहब्बत का पैग़ाम  हो जाए  मैं इश्क़ लिखूँ कलम से वो इन्क़लाब हो जाए। तेरी खामोश निगाहों में छुपा है जो समंदर, वो मेरी रगों में उतरकर तूफ़ान-ए-शराब हो जाए। तेरे होंठ कुछ न कहें पर धड़कनों की गवाही, सच्चाई से कह दूँ तो हरेक इज़हार-ए-ख़्वाब हो जाए। मैं आशिक़ भी हूँ, मैं शायर भी हूँ, और जुनूनी, तेरा नाम लूँ तो जमाना बेहिसाब हो जाए। आशीष "क्रांतिकारी" का बस इतना ही फ़साना, मोहब्बत का तीर चले और इश्क़ इन्क़लाब हो जाए। आशीष कुमार आशी

सच का आईना

 सच का आईना जुगनुओं की रोशनी से अंधेरा मिटाया नहीं जाता, काग़ज़ की कश्ती से किनारा पाया नहीं जाता। रूह को होती है मोहब्बत रूह से, बना के ताजमहल ग़रीबों की मोहब्बत का मज़ाक उड़ाया नहीं जाता। हवा में उड़ कर अंदाज़े बयां करते हो बर्बादी का, शाम ढलने के बाद किसी खंडहर में जाया नहीं जाता। समंदर में उतर कर ही मापा जाता है गहराइयों को, नक़्शे काग़ज़ पर बना कर अंदाज़ा लगाया नहीं जाता। सच की धूप से बचकर जो परछाइयों में छुप जाते हैं, ऐसे लोगों को कभी सहारा बनाया नहीं जाता। झोपड़ियों में लगी आग को उजाला समझ लिया जाता है  गरीबों  के  ताज को क्यों कभी बचाया नहीं जाता। गरीब की भूख का हिसाब किताबों में नहीं मिलता, मज़दूर की मेहनत का  कभी  मौल चुकाया नहीं जाता। जो तोड़ कर पत्थर महल खड़े कर जाते हैं, उन्हीं हाथों की थाली में दो वक्त का निवाला नहीं जाता   पत्थरों को काट कर राह बना देता है,दशरथ मांझी  उसके प्यार  को प्यार कभी बताया नहीं जाता  वो वक़्त भी आएगा जब सच से सामना होगा उनका, झूठ के ताज को कीचड़ में गिरने से बचाया नहीं जाता। ✍️ आशीष कुमार आशी

*ज़िंदगी की राह*

 *ज़िंदगी की राह*  आशीश कुमार ‘आशी’ ज़िंदगी में यूँ अपना होंसला बनाए रखना, आँखों में सपनों की रौशनी बचाए रखना। बाँस के तिनकों से चिंगारी ज़रूर उठेगी, तूफ़ानों में भी तुम उम्मीद का दिया जलाए रखना। मुश्किलों से डरकर सफ़र छोड़ना मत, हर मुश्किल को अपना रास्ता बनाए रखना। अँधेरा जब भी घेर ले तेरे मक़ाम को, सूरज की तरह ख़ुद को जलाए रखना। दोस्ती ज़िंदगी से निभाना ज़रूरी है, मौत से हँसकर रिश्ता बनाए रखना। नाव काग़ज़ की क्या तुझे किनारा दिखाएगी, हौंसलों की बस अपनी पतवार बनाए रखना। मोहब्बत की ख़ुशबू हर दिल तक पहुँच जाएगी, इंसानियत की राह पर ख़ुद को चलाए रखना।  राम-रहीम, ईसा-मसीहा सब एक ही पैग़ाम दें, धर्म नहीं, इंसानियत को अपना खुदा बनाए रखना।