Posts

Showing posts from May, 2021

जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

Image
 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

सीटू विचार भी ,हथियार भी:---- विजेंद्र मेहरा

 *सीटू - विचार भी,हथियार भी* *विजेंद्र मेहरा* *प्रदेशाध्यक्ष सीटू,हि. प्र.*            30 मई भारत वर्ष के क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के लिए कोई आम दिन नहीं है। यह दिन भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखता है। इस दिन मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी व वैज्ञानिक विचारधारा वाले मजदूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियनज़(सीटू) का वर्ष 1970 में कलकत्ता में जन्म हुआ था। भारत वर्ष का मजदूर आंदोलन देश के साम्राज्यवाद,उपनिवेशवाद,सामंतवाद विरोधी आंदोलन का प्रतिबिम्बन रहा है। वर्ष 1920 में जब देश में मजदूर संगठन एटक का गठन हुआ तो यह दो बुनियादी बातों को लेकर संघर्षरत हुआ। पहली बात यह थी कि मजदूर वर्ग शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई तेज करके शोषणविहीन समाज की स्थापना के लिये कार्य करेगा। दूसरी बात यह थी कि मजदूर,किसान,खेतिहर मजदूर,महिला,छात्र व नौजवान तबकों की व्यापक एकता कायम करते हुए देश से ब्रिटिश हुकूमत को खदेड़ने के लिए देश के आज़ादी के आंदोलन में यह अपनी निर्णायक भूमिका निभाएगा। इसी बुनियाद पर भारत में मजदूर आंदोलन की राष्ट्रव्यापी बुनियाद खड़ी की गई। इसी परिदृश्य म...

राष्ट्रवाद के डिस्कोर्स में कांग्रेसी पूरी तरह आरएसएस के गिरफ्त में फंस चुके हैं।:---राजीव कुंवर

 राष्ट्रवाद के डिस्कोर्स में कांग्रेसी पूरी तरह आरएसएस के गिरफ्त में फंस चुके हैं।  किसी भी कांग्रेसी से बात कीजिए वे भी राष्ट्रवाद का साम्राज्यवाद विरोधी स्वरूप विस्मृत कर चुके हैं। एक कांग्रेसी सज्जन बोले कि बताएं जिन्ना की तस्वीर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगाने का क्या मतलब ? वे हमास के हमले और इजरायल के हमले को एक ही श्रेणी में रखने की बात करते हैं परंतु थोड़ा कुरेदने पर हमास को आतंकवादी संगठन वैसे ही कहते हैं जैसे आरएसएस। एकदम से ताव में आकर वे बोले कि आखिर हमास को फिलिस्तीन की ठेकेदारी किसने दे दी? यासिर अराफात तो ठीक पर हमास कैसे ठीक ? मैंने हल्के से पूछ दिया कि सुभाषचंद्र बोस को किसने ठेकेदारी दी थी? गूँगियाने लगे।  हिंसा अपने आप में कोई मूल्य थोड़े न रखता है! पहले तो सर्वाइकल ऑफ द फिटेस्ट से लेकर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है का नेचुरल जस्टिस मने प्राकृतिक न्याय माना जाता था। आधुनिक सार्वभौमिक मूल्य ने इसे बदल दिया। हर व्यक्ति की स्वतंत्रता और बराबरी को सार्वभौमिक मूल्य माना गया। ऐसे में स्वतंत्रता और बराबरी के लिए प्रतिरोध को मूल्यवान माना गया। स्वतंत्रत...