वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

सीटू विचार भी ,हथियार भी:---- विजेंद्र मेहरा

 *सीटू - विचार भी,हथियार भी*


*विजेंद्र मेहरा*

*प्रदेशाध्यक्ष सीटू,हि. प्र.*


           30 मई भारत वर्ष के क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के लिए कोई आम दिन नहीं है। यह दिन भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखता है। इस दिन मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी व वैज्ञानिक विचारधारा वाले मजदूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियनज़(सीटू) का वर्ष 1970 में कलकत्ता में जन्म हुआ था। भारत वर्ष का मजदूर आंदोलन देश के साम्राज्यवाद,उपनिवेशवाद,सामंतवाद विरोधी आंदोलन का प्रतिबिम्बन रहा है। वर्ष 1920 में जब देश में मजदूर संगठन एटक का गठन हुआ तो यह दो बुनियादी बातों को लेकर संघर्षरत हुआ। पहली बात यह थी कि मजदूर वर्ग शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई तेज करके शोषणविहीन समाज की स्थापना के लिये कार्य करेगा। दूसरी बात यह थी कि मजदूर,किसान,खेतिहर मजदूर,महिला,छात्र व नौजवान तबकों की व्यापक एकता कायम करते हुए देश से ब्रिटिश हुकूमत को खदेड़ने के लिए देश के आज़ादी के आंदोलन में यह अपनी निर्णायक भूमिका निभाएगा। इसी बुनियाद पर भारत में मजदूर आंदोलन की राष्ट्रव्यापी बुनियाद खड़ी की गई। इसी परिदृश्य में साम्राज्यवाद व उनिवेशवादवाद विरोधी आंदोलन में देश के मजदूर वर्ग की निर्णायक भूमिका रही व मजदूर आंदोलन गौरवमयी इतिहास,परम्परा,विरासत व धरोहर का गवाह बना। 


              अक्सर आम जनता यही सोचती है कि सभी ट्रेड यूनियनें एक जैसी ही होती हैं व वे मजदूरों की आर्थिक मांगों को उठाने व उनका समाधान करने का कार्य करती हैं व मूलतः यही उनका एकमात्र कार्य है। यह अर्ध सच्चाई है। पूंजीपति शासक वर्ग द्वारा पोषित सुधारवादी ट्रेड यूनियनें अपने आप को जान बूझकर एक गुप्त एजेंडे के तहत केवल आर्थिक मांगों के समाधान तक सीमित रखती हैं व मजदूरों की मूल समस्याओं की जड़ पूंजीवादी व्यवस्था पर करारी चोट करके उसके निषेध व खात्मे की वकालत नहीं करती हैं। सुधारवादी ट्रेड यूनियनें अपने आका शासक वर्ग के गुप्त एजेंडे को आगे बढाने के लिए बड़ी चतुराई से आदर्शवादी विचार का सहारा लेकर मजदूरों की वास्तविक स्थिति के लिए भाग्य व किस्मत को जिम्मेवार ठहराने की कोशिश करती हैं। वे यह बतलाने की कोशिश करती हैं कि पूर्वजन्मों,भाग्य व किस्मत के आगे किसी की कोई नहीं चलती व मजदूरों के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन असम्भव है। ट्रेड यूनियन आंदोलन के ज़रिए छोटी मोटी आर्थिक रियायतें लेकर ही मजदूरों को कुछ राहत पहुंचाई जा सकती है। वे इस बात को पूरी तरह दरकिनार कर देती हैं कि पूंजीपति मजदूरों का शोषण करते हैं व पूंजीवाद की कब्र दफनाए बगैर मजदूरों की मुक्ति सम्भव नहीं है। वे वर्ग संघर्ष की जगह वर्ग सहयोग की वकालत करते हैं। वे मजदूरों को केवल आर्थिक सँघर्ष तक सीमित करना चाहते हैं व उनकी मुक्ति के लिए बेहद जरूरी राजनीतिक संघर्ष से उनका पल्ला झाड़ना चाहते हैं। वे कभी भी पसंद नहीं करते हैं कि मजदूर जागरूक होकर यह समझ जाएं कि पूंजीवादी  राजनीतिक सत्ता को उखाड़ना बेहद जरूरी है व इसके बगैर मजदूर कभी भी अपनी गुलामी की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो सकते हैं। 


           वर्ग संघर्ष व वर्ग सहयोग तथा क्रांतिकारी व सुधारवादी मजदूर आंदोलन पर पिछले पौने दो सौ सालों से लगातार बहस चलती रही है। कार्ल मार्क्स ने पहले कम्युनिस्ट घोषणापत्र में सन 1848 में वर्ग संघर्ष का ज़िक्र किया। उस से चार वर्ष पूर्व सन 1844 में अपने मित्र फ्रेडरिक एगेल्ज़ को पत्र व्यवहार में उन्होंने इसे विचारों का युद्ध करार दिया। वर्ष 1864 में इंटरनेशनल वर्किंग मेन्ज़ एसोसिएशन व प्रथम इंटरनेशनल में उन्होंने वर्ग संघर्ष पर बखूबी जोर दिया। उन्होंने जर्मनी,फ्रांस,इंग्लैंड व अन्य देशों के मजदूरों को भी बार-बार वर्ग संघर्ष के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पेरिस कम्यून के घटनाक्रम को भी वर्गीय दृष्टिकोण से ही परिभाषित किया व इसे मजदूरों की पहली ऐतिहासिक जीत करार दिया। कार्ल मार्क्स की मौत के तीन वर्ष बाद हुए अमरीका के शिकागो के मई दिवस के क्रांतिकारी मजदूर आंदोलन व कुर्बानियों ने भी वर्ग संघर्ष की भूमिका को काफी स्पष्टतः से रेखांकित किया। रूस का क्रांतिकारी आंदोलन सन 1890 के बाद से वर्ष 1917 की रूसी क्रांति तक ही लगातार मजदूर वर्ग की भूमिका,उसके चरित्र,वर्ग संघर्ष,आर्थिक व राजनीतिक संघर्ष के मसलों का गवाह रहा है। जिओर्जी पलेखनोव का नरोदवादियों से संघर्ष,लेनिन व स्टालिन का पलेखनोव,मार्तोव, एग्ज़लरोड़,ट्रोट्स्की आदि से वैचारिक,राजनीतिक व संगठनात्मक संघर्ष इसके महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ रहे हैं। वैसे 30 मई का दिन कुछ और कारणों से भी जाना जाता है। रूसी क्रांतिकारी ज़िओर्जी पलेखनोव की मृत्यु भी इसी दिन सन 1918 में हुई थी। पलेखनोव रूस के पहले मार्क्सवादी क्रांतिकारी माने जाते हैं। लेनिन ने कहा था कि उनके समय की एक पूरी पीढ़ी पलेखनोव की किताबों को पढ़कर ही मार्क्सवाद की ओर आकर्षित हुई थी व इस तरह पलेखनोव अपने आप में मार्क्सवाद की एक पाठशाला थे। इतिहास के उस कालखंड,समय और परिस्थितियों के ठोस विश्लेषण से यह मालूम पड़ता है कि मजदूर वर्ग के संघर्ष में पलेखनोव जैसे क्रांतिकारियों का बेहद अहम योगदान रहा है। यह अलग बात है कि बाद में पलेखनोव कुछ मुद्दों पर मार्क्सवाद से भटकाव में चले गए परन्तु मजदूर वर्ग ने हमेशा उन्हें उनके योगदान के लिए सदैव याद रखा।


          सन 1917 की रूसी क्रांति,वर्ग संघर्ष की परंपरा व दुनियाभर के क्रांतिकारी मजदूर आंदोलन के कारण ही भारत का  मजदूर आंदोलन प्रफ्फुलित हुआ था। यह एटक की स्थापना के नौ वर्ष के भीतर ही देश के मजदूर आंदोलन ने साबित कर दिया जब मजदूर व जनता विरोधी पब्लिक सेफ्टी बिल व ट्रेड डिस्प्यूट बिल के खिलाफ भगत सिंह व बटटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेम्बली में बिना किसी को हताहत किये दो बम गिराए व खुले वर्ग संघर्ष का ऐलान किया। उनके द्वारा केंद्रीय असेम्बली में फेंका गया पर्चा व जोर-जोर से लगाए गए इंकलाब जिंदाबाद,साम्राज्यवाद मुर्दाबाद व सर्वहारा क्रांति जिंदाबाद के तीन नारे वर्ग संघर्ष का उद्घोष था। सबको मालूम है कि इसकी कीमत इस व अन्य कुछ घटनाक्रमों की एवज़ में भगत सिंह को अपने साथियों के साथ फांसी के फंदे को चूमकर शहादत देकर चुकानी पड़ी। सीटू आज़ादी के क्रांतिकारी आंदोलन व मजदूर वर्ग के वर्ग संघर्ष की विरासत का ध्वजवाहक है। यह केवल आर्थिक मांगों को लेकर संघर्ष करने वाला मजदूर संगठन नहीं है। यह आर्थिक संघर्ष से आगे बढ़कर राजनीतिक संघर्ष का झंडाबरदार है। यह संगठन पूंजीवादी शोषण को बेनकाब करके मजदूरों की रोज़मर्रा की मांगों को पूंजीवादी आर्थिक नीतियों से जोड़ता है तथा इन नीतियों के पीछे की राजनीति के बारे में मजदूर वर्ग को शिक्षित करता है व पूंजीवादी राजनीति को बेनकाब व पर्दाफाश करता है।


         आज सीटू की स्थापना के पचास वर्ष बीतने पर देश के मजदूर वर्ग व मेहनतकश आवाम पर शासक वर्ग का हमला बढ़ा है और इसलिए सीटू जैसे क्रांतिकारी मजदूर संगठन की आवश्यकता और भी बढ़ गयी है। कोरोना महामारी में भूखे-प्यासे पैदल चलते लाखों मजदूरों,निर्दोष मजदूरों पर बरसाए जाने वाले पुलिसिया डंडे,सड़कों पर ही बच्चों को जन्म देतीं महिला मजदूरों,पैदल चलते-चलते जान गंवाने वाले हज़ारों मजदूरों,कोरोना काल में बेरोजगार होने वाले लगभग चौदह करोड़ मजदूरों,बेरोज़गारी के कारण गरीब होने वाले करोड़ों मजदूरों व कोरोना वैक्सीन तथा उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में जान गंवाने वाले लोगों की आवाज़ को बुलन्द करने का कार्य अगर सही रूप में किसी ने किया है तो वह मजदूर संगठन सीटू ही रहा है। पिछले तीस वर्षों में सन 1990 के बाद लायी गयी मजदूर-किसान व आम जनता विरोधी नई आर्थिक नीतियों के खिलाफ सीटू ने निरन्तर संघर्ष किया है व लगभग बीस राष्ट्रव्यापी हड़तालें करके मेहनतकश जनता की मांगों को प्रमुखता से उठाया है। इस देश की व्यापक ट्रेड यूनियन एकता को कायम करने व देश की लगभग सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों को एक मंच पर लाने की ऐतिहासिक भूमिका सीटू ने अदा की है जिसकी बदौलत पिछले दस वर्षों से भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर देश की सभी दस केंद्रीय ट्रेड युनियनें व फेडरेशनें तानाशाह व आम जनता विरोधी नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इस देश में मजदूर,किसान व खेतिहर मजदूर एकता कायम करने में भी सीटू ने स्वर्णिम योगदान दिया है। सीटू की स्थापना के पचास साल वास्तव में मजदूरों की व्यापक एकता,मजदूरों,किसानों,खेतिहर मजदूरों,कर्मचारियों व अन्य मेहनतकश अवाम की एकता व संघर्ष का स्वर्णिम काल है। यह आंदोलन ऐतिहासिक किसान आंदोलन के पिछले छः महीने के अंतराल में और निखरा है व आगे बढ़ा है। मजदूर-किसान एकता की बुनियाद सही मायनों में विकसित हुई है व आगे बढ़ी है। इस क्रांतिकारी परम्परा को और मजबूत करने की आवश्यकता है व यह नारों से आगे बढ़कर धरातल पर मजबूत करनी होगी जहां पर वास्तव में ही मजदूर-किसान संघर्ष की धुरी बन जाएं व जिसके इर्द-गिर्द पूरी मेहनतकश जनता लामबंद हो। 


                शासक वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा पिछले सौ सालों में देश के ट्रेड यूनियन आंदोलन की बदौलत हासिल श्रम अधिकारों को छीना जा रहा है। इस दौरान बने चौबलिस श्रम कानूनों में से उनत्तीस श्रम कानूनों को बिल्कुल खत्म करके चार  मजदूर विरोधी लेबर कोड बना दिये गए हैं। बचे हुए पन्द्रह श्रम कानूनों की हालत यह है कि वे न उगलते बनते हैं न निगलते। वे हाथी के दांतों की तरह हैं जो होकर भी नहीं हैं। वे वस्तुतः रद्दी की टोकरी में डाल दिये गए हैं। उन्हें लागू करने का तो सवाल ही नहीं उठता व समय के साथ उनका स्वतः नष्ट होना तय है। इस तरह मजदूरों ने सौ साल के अंतराल में अपनी एकता,संघर्ष व बलिदानों से जो कानून हासिल किए थे उन्हें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया है। बड़ी गम्भीर स्थिति है कि एक तरफ कोविड महामारी के कारण पिछले सवा एक वर्ष में लगभग चौदह करोड़ लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ गया है। करोड़ों मजदूर महामारी के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं। महामारी के कारण बेरोजगार होने से हज़ारों मेहनतकश लोग आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं। मनरेगा,निर्माण,रेहड़ी फड़ी तयबजारी,खुदरा व परचून व्यापार,सेल्जमैन,माइक्रो,स्मॉल व मीडियम इंटरप्राइजेज,पर्यटन,होटल,होम स्टे,रेस्तरां,ढाबा,टैक्सी,टूअर एन्ड ट्रेवल,गाइड,कुली,फोटोग्राफर,एडवेंचर स्पोर्ट्स,घोड़े वाले आदि बर्बाद हो गए हैं। कोरोना योद्धा के रूप में कार्यरत डॉक्टर,नर्सिंग स्टाफ,पैरामेडिकल स्टाफ,तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी,आउटसोर्स,पार्ट टाइम,सफाई कर्मी,आशा,आंगनबाड़ी आदि कर्मी बहुत बुरी स्थिति में हैं। न उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो पा रही है और न ही उन्हें सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद दी जा रही है। 


      ऐसे समय में जब कामकाजी लोग एक तरफ कोरोना महामारी की मार के कारण बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं और दूसरी ओर महंगे खाद्य पदार्थ,बच्चों की महंगी शिक्षा,महंगा स्वास्थ्य,महंगी रहने की व्यवस्था उन पर दोहरा हमला कर रही है। नागरिकों को कोरोना  वैक्सीन तक उपलब्ध नहीं हो पा रही है। मजदूर वर्ग की नौकरियों से छंटनी,उनके वेतन व कार्यदिवसों में लगातार कटौती,उनके काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह करने से मजदूरों की हालत दयनीय हो गयी है। ऐसे वक्त में शासक वर्ग की रहनुमाई में पूंजीपतियों,कारखानेदारों,उद्योगपतियों,धन्नासेठों व नैगमिक घरानों की धन दौलत सम्पदा कई गुणा बढ़ना व मजदूर वर्ग के बड़े हिस्से का गरीबी रेखा के नीचे चले जाना पूंजीवादी व्यवस्था की वर्गीय पोल खोल रहा है। केंद्र सरकार द्वारा पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए श्रम कानूनों को खत्म करना,नैगमिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों व बिजली विधेयक को लागू करना व पूंजीपतियों की लूट को अधिकतम बढाकर उनकी सम्पदा को कई गुणा बढाने के लिए पूरे सार्वजनिक क्षेत्र को कौड़ियों के भाव बेचना,इन सब से केंद्र सरकार का वर्गीय दृष्टिकोण साफ हो चुका है। 


          इसलिए वर्तमान दौर में सीटू के नेतृत्व में मजदूर वर्ग के समक्ष यह चुनौती व कार्यभार है कि वह मजदूरों को  शिक्षित करते हुए उनकी एकता बनाते हुए उन्हें तीखे संघर्षों में झोंके व लुटेरे पूँजीवाद का पर्दाफाश करे। वह मजदूरों को समझाए कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की आपदा को भी नरेंद्र मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है तभी तो देश के खरबपतियों की आय महामारी में भी बढ़ गई है। कोरोना टीका बनाने वाली निजी कंपनियों के मालिक भी रातोंरात खरबपति बन गए हैं। मजदूर,किसान व आम मेहनतकश जनता को शिक्षित करना होगा कि अंधराष्ट्रवाद,सम्प्रदायिकता व धार्मिक ध्रुवीकरण ही वह हथियार है जिसकी बदौलत शासक वर्ग मजदूरों की वास्तविक आर्थिक व राजनीतिक लड़ाई की धार को मोड़कर उसको इसके जाल में उलझाकर कमज़ोर करना चाहता है। साम्प्रदायिकता के सहारे ही वह साम्राज्यवाद के लूट के एजेंडे को और ज़्यादा पोषित करने का कार्य करेगा। साम्प्रदायिकता व साम्राज्यवाद के इस मजदूर-किसान विरोधी गठजोड़ को बेनकाब करना होगा। 


         यह पूंजीवाद है जहां पर इंसान के हाथों इंसान का शोषण तय है। याद रखें कि आधुनिक मजदूर वर्ग भी इसी पूंजीवाद की कोख से जन्मा है जो इस लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था की कब्र खोदेगा। महत्वपूर्ण केवल यह है कि एकता,संघर्ष व बलिदान के नारे को वास्तव में धरातल पर कैसे उतारा जाए व वर्ग संघर्ष को तेज करके पूंजीवाद की इस लूट,शोषण,दमन,अत्याचार पर कैसे रोक लगाई जाए। यह केवल और केवल वर्ग संघर्ष से ही मुमकिन है। इसके लिए इसके सिवाय कोई और शॉर्ट कट नहीं है।

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