वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

शिमला संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे दो फौजियों और एक सब्जी वाले रवि कुमार में अंतर


शिमला संसदीय क्षेत्र में इस बार दो राष्ट्रीय पार्टीयों से मुख्यता कांग्रेस और भाजपा से 2 फौजी मैदान में है , चुनाव के गलियारों में ये चर्चा जोरों शोरो से है कि इस बार दो फौजी मैदान में है , यँहा तक कि एक प्रत्याशी ने तो अपने आप मे और अपने प्रतिद्वंदी में क्या अंतर है ये भी बताना शुरू कर दिया और समाचारो में और सोशल मीडिया में खूब उछाला  की आखिर  इन दोनों फ़ौजियीं में किस कदर अंतर है, परन्तु साथियो आज में आपको ये बताना चाहता हूँ कि एक सब्जी बेचने वाले रवि कुमार दलित और दो आर्मी से सेवानिवृत्त हो कर आये फौजियों में अंतर क्या है, दोनो फौजियों की वीरता की गाथा तो उनके प्रशंसक आपको प्रचार प्रसार के माध्यम से मिलता रहेगा, सबसे बड़ा अंतर तो ये है कि इन दोनों फौजियों के पास 70 लाख जो चुनाव आयोग ने निर्धारित किया है वो राशि चुनाव लड़ने को होगी, 70 लाख ही क्या हो सकता है कि उनकी ये राशि उनके पास करोड़ों में हो परन्तु एक सब्जी वाला जो चुनाव लड़ रहा है जोकि कोई  राजनेता नही है सिर्फ और सिर्फ दोनो राजनीतिक दलों के खिलाफ जिसके ये प्रत्याशी एक नही दर्जनों दलितों के साथ हुए अत्याचारों के खिलाफ चुप्पी साधे बैठे क्योंकि तब ये फौजी नही थे ये नेता थे क्योंकि कमजोर तपके के साथ खड़े रहना इनकी शान के खिलाफ था , ये दोनो ही शक्स आर्थिक रूप से सम्पन थे, जिस आरक्षित सीट से ये चुनाव लड़ रहे  है उसी शिमला संसदीय क्षेत्र में ही दो दिल दहलाने वाली जिनदान और रजत की हत्या हुई थी,  सब्जी वाले रवि कुमार ने उन दोनों घटनाओं में  फौजी न हो कर भी अपना योगदान दिया और न जाने इससे पहले भी कितनी ही बार दलित समुदाय के हितों के लिए लड़ता रहा है।  दूसरा सबसे बड़ा अंतर ये है कि ये दोनों फौजी जानते है कि चुनाव भी इन दोनों में  से ही कोई जीतेगा क्योंकि इनके पास धन दौलत  पैसा और बड़ी पार्टियों का टिकट है,परन्तु फौजी होने के वावजूद इनके पास वो हिममत और वो जज्बा नही जोकि समाज मे हो रहे शोषण के खिलाफ लड़ाई कर सके,
और दूसरी तरफ रवि कुमार है जो न तो फौजी है न ही पैसे वाला अगर कुछ उसके पास  है तो हिम्मत और जज्बा और समाज के शोषितों के लिए आवाज उठाने का जज्बा, अब आप सभी को देखना है कि आप लोगों को शोषण के खिलाफ खामोश रहने वाले फौजियों की जरूरत है या फिर  हौंसले और जज्बे से लबरेज शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाला सब्जी वाला कि।

आशीश  कुमार आशी

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