वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

Image
*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

सेना की शहादत देश के लिए होती है न की राजनीतिक दलों के वोट के लिए :--आशीष कुमार आशी

17 वी लोक सभा के चुनाव अपनी चरम सीमा पर है , सभी राजनीतिक दल किसी न किसी मुद्दों को  ले कर जनता के बीच जा रहे है, सभी राजनीतिक पार्टीयों के लोग अपने घोषणा पत्र के माध्यम से जनता के बीच  जा रहे है, परन्तु अगर देखा जाए तो घोषणा पत्र तो पिछली लोकसभा के चुनाव के दौरान भी था उसमें से कुछ वायदे ऐसे भी थे जिनको तो खुद घोषणा पत्र बनाने वाली पार्टी ने खुद ही जुमला कह दिया । तो फिर घोषणा पत्र का औचित्य क्या रह जाता है, जब बात चुनाव की आती है  तो हम केवल सरकार बनाने के लिए ही वोट नही करते बल्कि लोकतंत्र और इस देश को मजबूत बनाने के लिए वोट करते है, पिछले 5 वर्षों में जो लोकतंत्र की हत्या हुई है वह किसी से छुपी नही है , अगर इन  5 सालों की तुलना की जाए तो लोकतंत्र के जो हाल और सरकारी संस्थाओं का जो हाल पिछले 5 वर्षों में हुआ है ये भी एक प्रकार का अघोषित आपातकाल की तरह रहा है, पिछली सरकार ने हरेक सरकारी तंत्र और उनकी स्वयत्तता को भंग करने के इलावा कोई ऐसा काम नही किया जिससे  ये कहा जा सके  की ये दौर अघोषित आपातकाल का नही था। अभी आप लोग देखे की चुनाव आचार सहिंता का उलंघन कितनी दफा हुआ है और किसने कितनी बार किया है अगर इसकी गिनती की जाए तो खुद को विश्व की सबसे बड़ी  पार्टी कहलकने वाली का नाम आएगा,चुनाव आयोग बिल्कुल भी ये ध्यान नही दे रहा है या फिर इसको जान बूझ कर अनदेखा कर रहा है ,चुनाव आचार सहिंता तो क्या  एक राज्यपाल जो खुद को मोदी की सेना बता रहे है, आज भी वो अपने पद पर बने हुए है, क्या हमारे देश के राष्ट्रपति की दृष्टी में
ये मामला नही है, ऐसा करने पर एक बार इतिहास में  हिमाचल के राज्यपाल को इस्तीफा देना पड़ा था, परन्तु आज उन उसूलों और राज्यपाल की पद की गरिमा का कोई महत्व नही है क्योंकि आज आपके पास तानाशाही  रूपी हथियार है झूठा प्रचार करने वाला  बिकाऊ मीडिया है, इतने में ही बात नही रुक जाती अभी तक तो चलो मोदी जी के भगत विधायक मंत्री सेना के नाम पर वोट मांग रहे है थे और आचार संहिता का उलंघन कर रहे थे,परन्तु आज महाराष्ट्र के अंदर प्रधान सेवक का पुलवामा हमले और सुरजिकल स्ट्राइक के नाम पर वोट की अपील करना आदर्श आचार संहिता का उलंघन तो है ही साथ मे निंदनीय भी है कि किस तरह सेना के शहीद जवानों के नाम मार वोट मांगे जा  रहे है, ये वही अर्ध सैनिक बल के लोग है जिनको  यात्रा के लिए  रक्षा मंत्रालय को सूचित करने पर भी हवाई सुविधा नही मिली थी ,और जिन अर्ध सैनिकों की शहादत पर आप वोट मांग रहे है क्या संवैधानिक रूप से उनको शहीद का दर्जा देने का कोई वादा आपके घोषणा पत्र में है या नही , क्योंकि जिनके नाम पर आप वोट मांग रहे है वे लोग अपनी जिंदगी देश के नाम न्यौछावर करके भी शाहीद नही कहलाते और न ही पेंशन की सुविधा पाते और देश का नेता अगर बुखार से भी मृत्यु को प्राप्त हो और मात्र कुछ दिनों के लिए भी विधायक और सांसद बन जाये तो वी भी राजकीय सम्मान और पेंशन का हकदार होता है , मेरा अर्ध सैनिक बल का जवान इस से अछूता रह जाता है।
इसलिए आप सभी राजनीतिक दलों से निवेदन है कि सेना की शहादत देश के लिए होती है नाकि  राजनीतिक दलों के वोट के  लिए।
:---- आशीष कुमार आशी

Comments

Popular posts from this blog

नही हो कोई भी मिनी आंगनवाड़ी केंद्र बंद, सभी को किया जाये अपग्रेड* :--सीटू

वंदना अध्यक्ष और श्यामा महासचिव और किरण भंडारी बनी प्रोजेक्ट पछाद की कोषाध्यक्ष*

तीन माह से केंद्र से नहीं मिल रहा मानदेय, और पोषण ट्रैकर और टी एच आर के लिए हर माह ओ टी पी के नाम पर लाभार्थी भी करते है प्रताड़ित*