जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

सेना की शहादत देश के लिए होती है न की राजनीतिक दलों के वोट के लिए :--आशीष कुमार आशी

17 वी लोक सभा के चुनाव अपनी चरम सीमा पर है , सभी राजनीतिक दल किसी न किसी मुद्दों को  ले कर जनता के बीच जा रहे है, सभी राजनीतिक पार्टीयों के लोग अपने घोषणा पत्र के माध्यम से जनता के बीच  जा रहे है, परन्तु अगर देखा जाए तो घोषणा पत्र तो पिछली लोकसभा के चुनाव के दौरान भी था उसमें से कुछ वायदे ऐसे भी थे जिनको तो खुद घोषणा पत्र बनाने वाली पार्टी ने खुद ही जुमला कह दिया । तो फिर घोषणा पत्र का औचित्य क्या रह जाता है, जब बात चुनाव की आती है  तो हम केवल सरकार बनाने के लिए ही वोट नही करते बल्कि लोकतंत्र और इस देश को मजबूत बनाने के लिए वोट करते है, पिछले 5 वर्षों में जो लोकतंत्र की हत्या हुई है वह किसी से छुपी नही है , अगर इन  5 सालों की तुलना की जाए तो लोकतंत्र के जो हाल और सरकारी संस्थाओं का जो हाल पिछले 5 वर्षों में हुआ है ये भी एक प्रकार का अघोषित आपातकाल की तरह रहा है, पिछली सरकार ने हरेक सरकारी तंत्र और उनकी स्वयत्तता को भंग करने के इलावा कोई ऐसा काम नही किया जिससे  ये कहा जा सके  की ये दौर अघोषित आपातकाल का नही था। अभी आप लोग देखे की चुनाव आचार सहिंता का उलंघन कितनी दफा हुआ है और किसने कितनी बार किया है अगर इसकी गिनती की जाए तो खुद को विश्व की सबसे बड़ी  पार्टी कहलकने वाली का नाम आएगा,चुनाव आयोग बिल्कुल भी ये ध्यान नही दे रहा है या फिर इसको जान बूझ कर अनदेखा कर रहा है ,चुनाव आचार सहिंता तो क्या  एक राज्यपाल जो खुद को मोदी की सेना बता रहे है, आज भी वो अपने पद पर बने हुए है, क्या हमारे देश के राष्ट्रपति की दृष्टी में
ये मामला नही है, ऐसा करने पर एक बार इतिहास में  हिमाचल के राज्यपाल को इस्तीफा देना पड़ा था, परन्तु आज उन उसूलों और राज्यपाल की पद की गरिमा का कोई महत्व नही है क्योंकि आज आपके पास तानाशाही  रूपी हथियार है झूठा प्रचार करने वाला  बिकाऊ मीडिया है, इतने में ही बात नही रुक जाती अभी तक तो चलो मोदी जी के भगत विधायक मंत्री सेना के नाम पर वोट मांग रहे है थे और आचार संहिता का उलंघन कर रहे थे,परन्तु आज महाराष्ट्र के अंदर प्रधान सेवक का पुलवामा हमले और सुरजिकल स्ट्राइक के नाम पर वोट की अपील करना आदर्श आचार संहिता का उलंघन तो है ही साथ मे निंदनीय भी है कि किस तरह सेना के शहीद जवानों के नाम मार वोट मांगे जा  रहे है, ये वही अर्ध सैनिक बल के लोग है जिनको  यात्रा के लिए  रक्षा मंत्रालय को सूचित करने पर भी हवाई सुविधा नही मिली थी ,और जिन अर्ध सैनिकों की शहादत पर आप वोट मांग रहे है क्या संवैधानिक रूप से उनको शहीद का दर्जा देने का कोई वादा आपके घोषणा पत्र में है या नही , क्योंकि जिनके नाम पर आप वोट मांग रहे है वे लोग अपनी जिंदगी देश के नाम न्यौछावर करके भी शाहीद नही कहलाते और न ही पेंशन की सुविधा पाते और देश का नेता अगर बुखार से भी मृत्यु को प्राप्त हो और मात्र कुछ दिनों के लिए भी विधायक और सांसद बन जाये तो वी भी राजकीय सम्मान और पेंशन का हकदार होता है , मेरा अर्ध सैनिक बल का जवान इस से अछूता रह जाता है।
इसलिए आप सभी राजनीतिक दलों से निवेदन है कि सेना की शहादत देश के लिए होती है नाकि  राजनीतिक दलों के वोट के  लिए।
:---- आशीष कुमार आशी

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