भारत को 1947 में आजादी मिली । लेकिन यह अधूरी आजादी थी , क्योंकि यह मात्र सत्ता हस्तांतरण थी अगड़ी जातियों को अंग्रेजों द्वारा । दलित पहले भी गुलाम थे और आज भी हैं । हिंदू और मुसलमान के आधार पर देश दो भागों में बांट दिया गया । बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर एक विद्वान समाजशास्त्री और राजनीतिज्ञ थे। संविधान निर्माण में उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय देकर इसे धर्म निरपेक्ष प्रकृति का रखा । परंतु संघ मनुस्मृति को संविधान बनाना चाहता था , और इसने इस संविधान का जमकर विरोध किया । क्योंकि संघ हिंदू राष्ट्र का पक्षधर था इसी कारण गांधी जी मुस्लिम प्रेम के कारण बलि चढ़ गये । आजादी के बाद ब्राह्मण बहुल सरकार सत्ता मे थी, इसलिए अपनी संस्कृति का सभी वर्गों मे रंग चढ़ाने के लिए स्कूलों मे पाठ्यक्रम हिंदू धर्मग्रंथों को आधार बनाकर बनाए गये । हमें रामायण ,महाभारत ,पुराणों के आख्यान ,रामचरितमानस ,गीता आदि काल्पनिक विषय पढ़ाए गये । परिणामस्वरूप हमारी सोच मनुवादी प्रकति की बनादी गयी । हमारे महानायक व समाजसुधारक जैसे जोतीराव फुले , पेरियार रामास्वामी , बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर , महामना रामस्वरूप वर्मा आदि को हमारे पाठ्यक्रम से दूर रखा गया कि कहीं इन्हें पढ़ कर हम
विद्रोह न कर बैठें । 1857 की आजादी की लड़ाई के नायक मातादीन भंगी के स्थान पर सवर्ण मंगल पांडे को श्रेय दिया गया और वीरांगना झलकारी बाई की जगह रानी लक्ष्मीबाई को तवज्जो दी गयी ।
बौद्ध धम्म भी सम्राट अशोक का राज्याश्रय पाकर फला फूला ।कहने का अभिप्राय है कि जिस धर्म की सरकार उसी धर्म का प्रचार प्रसार । संघ तो पहले ही इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाकर मनुस्मृति से संविधान को बदलना चाहता है ।और अब तो बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया है । सरकार भाजपा की है और रिमोट कंट्रोल संघ के पास है । अब रामायण और महाभारत क्यों नहीं दिखाना । मौका भी है और दस्तूर भी । लौकडाउन मे लोग घरों मे सिमटे हैं तो परोस दो अपनी संस्कृति का घातक जहर । मीडिया तो दत्तक पुत्र की तरह सांप्रदायिकता का जहर परोसने मे सरकार और संघ का साथ बढ़ चढ़ कर दे रहा है ।
जहां तक रामायण और महाभारत का प्रश्न है ,ये महाकाव्य हैं ,कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं । अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की धोखे से हत्या करके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग 185 ई पू में शासक बना ।बौद्धों का नरसंहार करके उसने हिंदू धर्म की स्थापना की । उसके दरबार में बाल्मीकि नामक एक ब्राह्मण कवि था जो इस रामायण का रचयिता है । पता नहीं कैसे एक समाज स्वयम् को उसे जोड़ता है । रामायण में शकों ,यवनों ,हूणों आदि का वर्णन है । भगवान बुद्ध को नास्तिक लिख कर गालियां दी गई हैं । मतलब सीधा है , यह बुद्ध के बाद की रचना है । तथा झूठ का पुलिंदा है ।यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न विशालकाय पुरुष के हाथ में रखी परात में धरी खीर खाने से दशरथ की रानियां गर्भवती होती हैं तब राम , लक्ष्मण ,भरत और शत्रुघ्न जन्मते हैं । सीता हल चलाते वक्त धरती से बर्तन में रखी पाई जाती है । हनुमान जी बिना किसी यंत्र के हवा में उड़ते हैं और पूरा पहाड़ उठा लाते हैं।वानर , जटायु , समुद्र आदि मानव भाषा बोलते हैं । यह एक कवि की कल्पना तो हो सकती है लेकिन यथार्थ नहीं , जैसे ये मनुवादी लोग समझते हैं । रामसेतू की लंबाई 100 योजन वह चौड़ाई 10योजन बताई गई है जो कोरी गप्प है ,चूंकि एक योजन 12 से 15 किलो मीटर लंबा होता है । १२ कि मी के हिसाब से लंबाई व चौड़ाई सच्चाई से कोसों दूर है । यही नही सहस्र कोटि वानर रामसेतु से लंका जाते हैं ,यानि १००० करोड़ । निर्जीव पुष्पक विमान राम से बातें करता है । इसी तरह पूरी रामायण कवि की कल्पना मात्र है । आत्मा ,परमात्मा ,पुनर्जन्म , भाग्य , वर्णव्यवस्था ,ऊंच नीच ,कर्मकांड ,पाखंड ,अंधविश्वास हिंदूधर्म के आधार स्तम्भ हैं । हम बचपन से इसी माहौल मे पले बढ़े हैं ।मंदिरो मे मार खाकर भी जाना ,जागरण कराना ,भंडारे देना ,मुक्ति की आस मे देवी देवता की पूजा अर्चना ,व्रत उपवास करना ,पंडित के बिना कोई शुभ कार्य न करना आदि ,यही तो मनुवाद में आकंठ डूबना है । इस मनुवाद की दलदल से बाहर निकलना इतना आसान भी नहीं है । इसका इलाज है अपने महापुरुषों और महानायको का गहराई से अध्ययन , हिंदू ग्रंथो की हकीकत जानना और मनुवाद के विरुद्ध जंग अपने घर से शुरु करना । कम से कम हमारे घरों की दीवारें इन भगवानों से तो मुक्त करने का अभियान तो चले ,ताकि हमारी भावी पीढ़ी को मनुवादी प्राइमरी स्कूल से मुक्ति मिले । विभिन्न मंचों पर समाज को जागरूक किया जाना जरुरी है । बामसेफ ,अर्जक संघ जैसे संंगठन इस दिशा मे दिनरात लगे हुए हैं । दलित शोषण मुक्ति मंच के प्रगतिशील विचारधारा के धनी क्रांतिकारी बुद्धिजीवी इस क्षेत्र मे अपना महत्तवपूर्ण योगदान दे ही रहे हैं ।उनको मेरा साधुवाद एवम् सलाम ।शातिर ब्राह्मण ने हमे हजारों उपजातियों में बांटकर हमारे बीच भि छुआछूत और भेदभाव का बीज बोकर अपनी सत्ता सुनिश्चित कर ली है । हम आपसी भेदभाव भुलाकर एक मंच पर इकट्ठे होकर ही इस मनुवादी व्यवस्था को खत्म करके सत्ता के सस्म्मान भागीदार बन सकते हैं
जय भीम नमो बुद्धाय ।
रामेश्वर सिंह
सैनवाला जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत
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