जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

भाजपा शासित राज्यों में नियोक्ताओं को सभी श्रम कानूनों से छूट देने की योजना :-----सीटू

भाजपा शासित राज्यों में नियोक्ताओं को सभी श्रम कानूनों से छूट देने की योजना तथा कुछ अन्य राज्यों में श्रम कानूनों के तहत बाध्यताओं
के गंभीर उल्लंघन की सीटू द्वारा निंदा

 कामकाजी जनता के बहुतायत को 45 दिनों के तालाबंदी की प्रक्रिया में नौकरियों की बंदी, वेतन की हानि, निवास से बेदखली आदि अमानवीय कष्टों में झोंक दिया गया है। इन लोगों को मुनाफे के भूखे नियोक्ता वर्ग द्वारा भूखी अस्तित्व विहीन वस्तुओं में घटाकर रख दिया गया है। इसपर वर्तमान सरकार ने, इन कामकाजी लोगों को वास्तव में गुलामी के स्तर पर लाने के लिए, इन पर अपने फनों और पंजों के साथ हमला कर दिया हैं।

 केंद्रीय सरकार ने इस क्रूर कवायद को शुरू करने के लिए अपनी आज्ञाकारी राज्य सरकारों को खुला छोड़ देने की रणनीति बनाई है। भाजपा नेतृत्व की गुजरात सरकार ने अगुआई करते हुए एकतरफा रूप से, बगैर फैक्टरी एक्ट के अनुसार वैध मुआवजे के, दैनिक कामकाज का समय 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया। हरियाणा और मध्य प्रदेश की सरकारों ने भी इसी ओर कदम बढ़ाए। इसके बाद पंजाब और राजस्थान में राज्य सरकारों की ओर से भी इसी तरह दैनिक कामकाज का समय 12 घंटे तक बढ़ाने की अधिसूचना जारी करने की सूचना मिली है, जो जाहिर है कि कॉर्पोरेट वर्ग के निर्देशों पर है तथा अब महाराष्ट्र व त्रिपुरा की सरकारें भी कथित तौर पर उसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

 इस दिशा में सबसे नए है उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अधिक आक्रामक कदम, जो अपने कॉर्पोरेट आकाओं के हुक्म पर लगभग सभी श्रम कानूनों के दायरे से कॉर्पोरेट नियोक्ताओं को दायित्वों से मुक्त करने के लिए लाए गए है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने 1000 दिन, यानी तीन साल के लिए फैक्ट्री अधिनियम, मध्य प्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ठेका श्रम अधिनियम आदि जैसे विभिन्न श्रम कानूनों के तहत नियोक्ताओं को उनके मूल दायित्वों से मुक्त करने के लिए प्रशासनिक आदेश / अध्यादेश के जरिये परिवर्तन के निर्णय की घोषणा की है। इसके चलते नियोक्ताओं को "अपनी सुविधानुसार" श्रमिकों को काम पर रखने या निकाल बाहर करने (लगाओ-भगाओ) के लिए सशक्त बनाया गया है; और उक्त अवधि के दौरान प्रतिष्ठानों में श्रम विभाग का हस्तक्षेप नहीं होगा। इतना ही नहीं, नियोक्ताओं को मध्य प्रदेश श्रम कल्याण बोर्ड को प्रति श्रमिक  80 / - रुपये के भुगतान से भी छूट दी गई है।

 इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 मई 2020 को आयोजित अपनी मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य के सभी प्रतिष्ठानों को तीन साल की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है, जिसे अध्यादेश के माध्यम से अधिसूचित किया जाएगा।

 यह भी जानकारी है कि त्रिपुरा में भाजपा सरकार ने दैनिक कामकाज के समय को 12 घंटे तक बढ़ाने का प्रस्ताव किया है और साथ ही 300 कर्मचारियों को रोजगार देने वाले सभी प्रतिष्ठानों में नियोक्ताओं की सुविधा के अनुसार श्रमिकों को काम पर रखने और निकालने (लगाओ-भगाओ) की अनुमति दी है।

 यह आशंका है, की अधिकांश अन्य राज्य सरकारें, विशेष रूप से वे जो भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा शासित है, विकास के नाम पर दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने और अपनी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की संदिग्ध दलील पर राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए इसी रास्ते का अनुसरण करेंगे। वास्तव में, कामकाजी जनता पर यह अमानवीय अपराध किया जा रहा है।

 सीटू ऐसे बर्बर कदमों की जोरदार निंदा करती है, जो उन मेहनतकश अवाम पर, जो वास्तव में देश के लिए धन पैदा कर रहे हैं, और साथ ही साथ पूंजीपतियों और बड़े-व्यवसाय द्वारा क्रूर शोषण और लूट से पीड़ित हैं, गुलामी की स्थितियों को थोपने जा रही हैं। सीटू सभी ट्रेड यूनियनों से, चाहे उनकी जो भी संबद्धता हो, तथा आम कामकाजी जनता को एकजुट होकर अपने अधिकारों और आजीविका पर इस बर्बर और क्रूर व्यवहार का विरोध राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट संघर्ष के माध्यम करने का आह्वान करती हैं।

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