*आजादी के 70 सालों बाद SC/ST वर्ग को आरक्षण की जरूरत क्यों*
*SC/ST वर्ग के लोगों के जीवन में आर्थिक सम्पन्नता आने पर भी उनके समाजिक पिछड़े पन का कभी अंत नहीं होता*।
*आशीष कुमार आशी*
हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने ये निर्णय दिया कि जिन अनुसूचित जाति जनजाति के व्यक्तियों को आरक्षण का एक बार लाभ मिल गया है उनको दुबारा इसका लाभ नहीं मिलेगा।
इसके बाद लगातार हर जगह सोशल मीडिया पर आरक्षण विरोधी प्रचार प्रसार शुरू हो गया है कुछ पार्टियों के नेता सोशल मीडिया पर भाजपा कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा और सांसद में पहुंचे अपनी पार्टियों के दलित प्रतिनिधियों से सवाल पूछ रहे है बल्कि उनको एक आदेश जारी कर रहे हैं कि वे SC,St आरक्षण का विरोध करे परन्तु सभी खामोशी से उस तरह के पोस्ट को नजर अंदाज कर रहे है क्यूंकि वे जानते है कि जिन राजनीतिक दलों का वे लोग विधानसभा। लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते है यदि वे अपनी पार्टी की विचारधारा के विरोध में सच बोलते भी है तो उनकी राजनीति का अंत निश्चित रूप से हो जाएगा। , परन्तु जाति। के नाम पर अपने समुदाय से वोट लेने के बाद वे निष्पक्ष रूप से आरक्षण पर अपनी बात साफ तौर पर नहीं रख रहे है जैसा कि अभी बिहार विधानसभा में देखने को मिला। अगर हम हिमाचल प्रदेश के है राजनीतिक आरक्षण के आधार पर विधानसभा लोकसभा पहुंचे प्रतिनिधियों मानसिकता को देखे तो उनकी मानसिकता साफ नजर आती है की वे इस विषय पर अपना पक्ष चाह। कर भी नहीं रख सकते यही उनकी पार्टियों की अलोकतांत्रिक प्रणाली है जो उन्हें चाह कर भी ऐसा करने से रोकती है।अब अगर हम बात करे की मौजूदा समय में आरक्षण क्यूं जरूरी है तो हमें सबसे पहले देश के अंदर कास्ट ब्रेकअप को समझना होगा देश के अंदर अगर हम बात करे तो SC,St,OBC, वर्ग को कुल मिला।कर देखे तो देश की आबादी में ये 70 प्रतिशत के लगभग है ,जैसे कि sc16.2 प्रतिशत,St 9 प्रतिशत, obc 44 प्रतिशत , इसके इलावा अन्य 30 प्रतिशत जिसमें मुस्लिम सिख ईसाई भी शामिल है , अगर हम इन आंकड़ों को देखे कि देश की आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा दलित वर्ग से है और अन्य 30 प्रतिशत इसमें भी अगर हम सिक्ख,ईसाई मुस्लिमो को।निकाल दे तो ये सिर्फ 20 प्रतिशत सवर्ण हिन्दू बचते है। अधिकांश लोग सवाल करते है कि आजादी के 70 साल के बाद अब भी क्यूं आरक्षण की जरूरत है अब तो कुछ बदल गया है , उन्न सभी लोगों से मेरी विनती है कि वे अपने आस पास के कार्यालय में जिधर काम करते हैं उधर देखे कि क्या आपके कार्यालय में कितने लोग SC,ST,Obc वर्ग से है यदि कुल स्टाफ 10 लोगों का है ती क्या उन 10 में से 7 लोग SC,St,obc वर्ग से है या नहीं साथियों समाज में जो लोग 70 प्रतिशत है वो ऊंचे पदों पर क्या उनकी भागीदारी उतनी ही है जितनी उनकी जनसंख्या है साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि समाज में जो लोग 70 प्रतिशत है ऊंचे पदों पर वो 20 प्रतिशत है और जो 20 प्रतिशत है वो इन पदों पर 70 प्रतिशत से भी अधिक है यही हाल मीडिया का है शिक्षा का है। संसाधनों पर अधिकार भी दलित वर्ग का न के बराबर है उच्च वर्ग का ही संसाधनों पर दबदबा है ।फिर सवाल खड़ा किया जाता है कि दलित वर्ग को अपनी योग्यता को बढ़ाना चाहिए पिछले 70 वर्षों में उनको आगे बढ़ने के लिए अवसर दिए है , जी बिल्कुल दिए है परन्तु इन अवसरों के प्रभाव से क्या कुछ फायदा हुआ भी है या नहीं अब इधर हम शिक्षा के अंतर के है देख ले एक वर्ग ऐसा है जिसको पढ़ने का अधिकार दिया गया और एक वर्ग जिसको ये कहा गया कि आपको शिक्षा का अधिकार नहीं है और हजारों साल तक उनको इस अधिकार से वंचित कर दिया गया और आज हजारों वर्षों से वंचित लोगों को आप मात्र 70 वर्षों में बराबरी पर आने के लिए कह रहे हो। सतीश देशपांडे के अनुसार अगर हम देखें तो मेडिकल कॉलेज में SC,St का प्रतिनिधित्व मात्र 3 प्रतिशत है।.annual higher education server के अनुसार देश के टॉप शैक्षणिक संस्थानों में 67 प्रतिशत से ज़्यादा दबदबा ऊंचे वर्ग से आने वालों का है ये स्थिति तब है जब आरक्षण पिछले 70 वर्षों से है जरा सोचो अगर आरक्षण ख़तम हो जाता है फिर क्या स्थिति होगी। अगर आप सुप्रीम कोर्ट जिधर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है पिछले 70 वर्षों में सिर्फ एक ही दलित CJI बना इसके इलावा आप मीडिया में प्रतिनिधित्व देखे तो 88 प्रतिशत टीवी एडिटर उच्च वर्ग से है और अन्य साधनों पर अधिकार को देखे तो ये अधिकार भी दलित वर्ग के पास ना के बराबर है आज जितनी आरक्षित चुनाव क्षेत्र है क्या राजनेतिक दल अन्य सामान्य वर्ग की सीटों पर दलित प्रतिनिधियों को चुनाव लड़ाते है, नहीं क्यूंकि उनके लिए कुछ स्थान निर्धारित कर दिए है वहीं उनकी सीमाएं है , कुछ राज्यो को छोड़ दे जिधर वामपंथी सरकारें रही है उधर हालत कुछ बेहतर देखने को मिल सकते है। इन्हीं कुछ तथ्यों के आधार पर हम कह सकते है कि आरक्षण जाति के आधार पर होना चाहिए क्यूंकि जाति ही असमानता को मापने का सबसे सरल तरीका है और दूसरा जब शोषण का आधार जाति है तो आरक्षण का आधार आर्थिक कैसे हो सकता है गरीब अमीर की असमानता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता परन्तु इस असमानता में मात्र आर्थिक असमानता है समाजिक असमानता नहीं। क्यूंकि आरक्षण के आधार पर नौकरी पा कर सम्पन्न हुए व्यक्ति को आज भी हमारे देश में में समाजिक पिछड़ापन कभी ख़तम नहीं होता है , देहात में और कुछ मनुवादी समाज में उसका उत्पीडन उच्च जाति के आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति से भी बदतर है। ये हालात दिन प्रतिदिन और खराब होते जा रहे है परन्तु जो ये सवाल आ रहे है ये कोई सवाल जनता खुद नहीं कर रही है परन्तु एक विचारधारा द्वारा ये प्रचार किया जा रहा है अगर उस विचार धारा को देखे तो वे है आरएसएस की विचारधारा और सरकारी हाथ भी इसमें है क्यूंकि सरकारें पूंजीवाद के इस दौर में नौकरियां ख़तम कर रही है , इसलिए फुट डालो और शासन करो के अपने पुरखों के कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए की बेरोजगार युवक बेरोजगारी का कारण सरकार से न पूछे इसलिए इस तरह का प्रचार किया जाता है ताकि सरकार के खिलाफ जो रोष पैदा होना चाहिए था वो आरक्षण के खिलाफ हो और आज ऐसा ये करने में सफल भी हो रहे हैं इसलिए ही हमारे समाज को छोटी छोटी जातिगत संगठनों के आधार पर बांट दिया है और हर जाति के तथाकथित नेता अपनी जाति को दूसरी जाति से श्रेष्ठ बताने के लिए सरकार और आरएसएस की पूंछ पकड़ कर देश में आरक्षण को और बाबा साहब द्वारा निर्मित सविधान को ख़तम करने में बराबर के हिस्सेदार बने हुए हैं।
*आशीष कुमार आशी*
राज्य सहसंयोजक
दलित शोषण मुक्ति मंच हिमाचल प्रदेश
7018777397
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