जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

9 मार्च विधानसभा घेराव के लिए सीटू ने बनाई रणनीति




हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले प्रदेश के सैंकड़ों मजदूर अपनी मांगों को लेकर 9 मार्च को विधानसभा घेराव करेंगे व मुख्यमंत्री को मांग-पत्र सौंपेंगे। प्रदर्शन की तैयारी के लिए यूनियन के पदाधिकारियों की बैठक सीटू राज्य कार्यालय शिमला में सम्पन्न हुई। बैठक में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा,यूनियन प्रदेशाध्यक्ष विरेन्द्र लाल,महासचिव दलीप सिंह,रमाकांत मिश्रा,बालक राम,हिमी देवी,रंजीव कुठियाला,सीता राम,हनी बैंस,अमित कुमार,उर्मिला देवी,विनोद कुमार,रीना देवी,राजकुमार,शालू देवी,विद्या गाज़टा,केशव,राकेश,विक्रम,संजू,संजय सामटा,सुरेंद्र,श्याम लाल,जितेंद्र,गोपी चंद आदि शामिल रहे।


सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा,यूनियन प्रदेशाध्यक्ष विरेन्द्र लाल व महासचिव दलीप सिंह ने प्रदेश सरकार से आउटसोर्स कर्मियों की मांगों को तुरन्त पूर्ण करने की मांग की है। उन्होंने आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति बनाने व उन्हें नियमित कर्मचारी घोषित करने की मांग की है। उन्होंने आउटसोर्स कर्मियों के लिए प्रतिमाह साढ़े दस हज़ार रुपये वेतन की घोषणा को कोरा मज़ाक करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन व सन 1992 के सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश अनुसार आउटसोर्स कर्मियों को 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन दिया जाए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। फिक्स टर्म रोज़गार व लेबर कोड को तुरन्त निरस्त किया जाए। आउटसोर्स कर्मचारियों को सभी प्रकार की छुट्टियों,ईपीएफ,ईएसआई,ग्रेच्युटी,पेंशन व ओवरटाइम वेतन की सुविधा पूर्ण रूप से लागू की जाए। उन्होंने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह प्रदेश के तीस हजार आउटसोर्स कर्मियों का शोषण व अनदेखी कर रही है। प्रदेश सरकार बार-बार घोषणाएं करने के बावजूद आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति नहीं बना रही है। उन्होंने मांग की है कि सरकार वर्तमान बजट सत्र में ही कर्मियों के लिए नीति बनाकर उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करे व उन्हें नियमित कर्मचारी घोषित करे।

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