वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

आउटसोर्स कर्मियों, सिलाई अध्यापकों, एसएमसी अध्यापकों, आईटी टीचर्स व एसपीओ के वेतन में नाम मात्र बढ़ोतरी करना व उनके लिए सरकार द्वारा कोई ठोस नीति न बनाना बेहद चिंताजनक है:--सीटू

 सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम का कहना है कि हिमाचल सरकार का बजट मजदूरों कर्मचारियों की आकांक्षाओं के खिलाफ है। आत्मनिर्भर हिमाचल के दस मुख्य बिंदुओं की बात करने वाले बजट में मजदूरों कर्मचारियों की बात तक न करना ही बजट की दिशा को बताता है। सरकार के एजेंडे से मजदूर कर्मचारी गायब हैं। भारी महंगाई के दौर में मजदूरों की दिहाड़ी में केवल 25 रुपये की बढ़ोतरी करना, मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम वेतन न देना, आंगनबाड़ी, मिड डे मील, आशा कर्मियों को ग्रेच्युटी व न्यूनतम वेतन सुविधा लागू न करना, वाटर कैरियर, जल रक्षकों, मल्टी परपज़ वर्करज़, पैरा फिटर, पम्प ऑपरेटरों, चौकीदारों, राजस्व चौकीदारों, पंचायत वेटनरी असिस्टेंट के मासिक वेतन में केवल 300 से 500 रुपये बढ़ोतरी करना व उन्हें सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन न देना उनके साथ क्रूर मज़ाक है। आउटसोर्स कर्मियों, सिलाई अध्यापकों, एसएमसी अध्यापकों, आईटी टीचर्स व एसपीओ के वेतन में नाम मात्र बढ़ोतरी करना व उनके लिए सरकार द्वारा कोई ठोस नीति न बनाना बेहद चिंताजनक है


। औद्योगिक मजदूरों की 40 प्रतिशत वेतन बढ़ोतरी, श्रम कानूनों की पालना, उनके एसओपी व सुरक्षा नियमों पर यह बजट खामोश है। निगमों व बोर्डों की ओपीएस बहाली पर खामोशी खलने वाली है व सरकार की दस गारंटियों की वादा खिलाफी है। यह बजट मजदूरों कर्मचारियों के दुखों का निवारण करने वाला बजट नहीं है।

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