जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

Image
 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

हिमाचल जैसे शांत राज्य में भी मुसलमानों के प्रति जहर उगलने से नहीं चुके मोदी* आशीष कुमार (हि०प्र०) सिरमौर


 *हिमाचल जैसे शांत राज्य में भी मुसलमानों  के प्रति जहर उगलने से नहीं चुके मोदी*

*आँगनावाडी ,मिड डे  मील , आशा वर्करज  की आय दोगुनी करने का इंडी गठबंधन का वादा यूनियनों के तीखे संघर्ष का है नतीजा*

        आशीष कुमार (हि०प्र०) सिरमौर


18 वी लोक सभा के चुनाव के अंतिम चरण में अब सभी राजनैतिक दलों का पुरा ध्यान हिमाचल प्रदेश की  4 लोकसभा सीटों की तरफ हो गया है । एक तरफ भारतीय जनता पार्टी  के स्टार प्रचारक के रूप में प्रधानमंत्री को चुनावी मैदान   हिमाचल प्रदेश के सिरमौर  में उतारा  वंही  दूसरी तरफ इंडी गठबंधन के और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष  राहुल गांधी जी ने भी हिमाचल का रुख किया , हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर मात्र 2 दिनों के अंतराल में देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के भाषणों का गवाह बना। यंहा पर दोनों  नेताओं के भाषण का तुलनात्मक विवरण संक्षिप्त में कर रहें है।

अगर  प्रधानमंत्री जी के भाषण और इंडी गठबंधन की जनसभा के नेता राहुल गांधी के भाषण को तुलनात्मक  रूप से देखें तो दोनो के भाषणों मे जमीन आसमान का अंतर था। नरेंदर मोदी ने हिमाचल जैसे शांत राज्य में भी अल्पसंख्यकों के प्रति जहर उगलने में कमी ना छोड़ी जोकि उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था  देश के प्रधान मंत्री  सम्बोधन मे एक तरफ जंहा स्वयं को हि सर्वोपरि बता कर सम्बोधन कर रहे थे और स्वयं ही  नारे लगा रहे थे की *मोदी है तो मुमकिन है* ये उनके दृष्टिकोण को दिखा रहा था की आज नरेंदर मोदी  के लिए पार्टी का कोई विशेष महत्व नहीं रह गया है ये सारे गुण एक तानाशाह के होते है ,मोदी के सम्बोधन में भारतीय जनता पार्टी का न तो जिक्र सुनने को मिला और न ही पार्टी के नारे , नारे लगे तो सिर्फ नरेंदर मोदी के , ये सारा घटना क्रम  जितना इस लोकतंत्र के लिए खतरा है उतना हि खतरा भारतीय जनता पार्टी  के लिए भी स्वयं के अस्तित्व को बचाने का है। मोदी का भाषण जंहा  जय श्री राम और नरेंदर मोदी को मजबूत करने से  शुरु होता है वंही राहुल गांधी का भाषण उनके हाथ में पकड़ी संविधान की पुस्तिका से संविधान जिंदाबाद और संविधान और लोकतंत्र बचाने से शुरु होता है । मोदी एक तरफ जंहा अपनी जनसंख्या के हिसाब से आजादी के आंदोलन मे बड़ चढ़ कर भाग लेने वाले मुसलमानो को जेहादी कह कर सम्बोधन कर  एक नफरत फैलाने की कोशिश करते हैँ तो वंही दूसरी तरफ राहुल गांधी  सभी लोगों से आपसी भाईचारा और सबको संविधान के आधार पर न्याय दिलाने की बात करते है। नरेंदर मोदी की जनसभा जो की पूर्णता एक व्यक्ती को सर्वोपरि साबित करने की कोशिश थी वंही राहुल गांधी की न्याय संकल्प रैली में व्यक्ति विशेष को त्वज्जों न दे कर  आम् जनता की  समस्याओें  पर केंद्रित थी। मोदी जी हमेशा की तरह एक रट्टी  रटाई  स्क्रिप्ट बोलते रहे जिसमे वो हिमाचल के लोगों  से खुद को संबंधित बताने  कोशिश करते रहे कुछ पहाड़ी सम्बोधन कर वो खुद को हिमाचली बताने की कोशिश करते रहे परन्तु उनके पूरे सम्बोधन में देश के किसान  हिमाचल के किसान  का कंही भी जिक्र नहीं आया। एक तरफ मोदी जंहा 10 प्रतिशत स्वर्ण  आरक्षण की बात कर रहे थे वंही दूसरी तरफ मुसलमानो की 67 जातियों को OBC का आरक्षण देने की खिलाफत कर आम जनता को मुसलमानों के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से भड़काने की कोशिश कर रहे थे और आम जनता की  समस्या पर बात करने से बच रहे थे। वंही दूसरी तरफ राहुल गांधी आम जनता के मुद्दों हिमाचल के किसान, सेब उत्पादन करने वालों की बात कर रहे थे। एक तरफ मोदी जी पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली एयर स्ट्राइक का जिक्र कर सैनिकों को तवज्जो न दे कर खुद श्रेय दे रहे थे और ये साबित करने की कोशिश कर रहे थे की  1965, 1967, 1971,1999 के युद्ध तो कुछ थे हि नहीं और देश सिर्फ 2014 के बाद सुरक्षित हुआ है   । वंही राहुल गांधी इंडी गठबंधन की और से अग्निवीर जैसी सैनिकों  का अपमान करने वाली योजना को बंद कर पहले की तरह सैनिक भरती की बात कर रहे थे। मोदी  जी जंहा स्थानीय लोगों को विकसित भारत के लिए मंदिरों मे जा कर पूजा करने को बोल रहे थे और विकसित भारत कैसे होगा उसकी योजना को  बताने से बच रहे थे वही  राहुल गांधी आम जनता के हाथ मे पैसा दे कर उनकी क्रय  शक्ति बढ़ा  कर उद्योगों मे उत्पादन बढ़ाने और रोजगार देने की बात कर रहे थे और केंदर की 30 लाख  नौकरियो को देने की बात कर रहे थे। नरेंदर मोदी का और राहुल गांधी के सम्बोधन में जमीन आसमान का अंतर था , हिमाचल से गहरा रिश्ता बताने वाले नरेंदर मोदी जी के सम्बोधन में प्रदेश में आई आपदा का जिक्र तक नहीं था जबकि राहुल गांधी का पुरा भाषण आम आदमी को लाभ कैसे मिले  उस पर फोकस था । अगर राहुल गांधी के भाषण खास कर उन लोगों के लिए भी  जरूरी है जो वामपंथ को अप्रसंगिक बताते है , क्यूंकि वामपंथ की राजनीति मात्र चुनावी राजनीति नहीं है बल्कि  दूसरे राजनैतिक दलों  को बीच मे आम जनता को राहत देने वाली नीतियों को  संघर्ष और चुनावी गठजोड़ के माध्यम से चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा बना कर आम जनता और मेहनत कश वर्ग के लिए  वैकल्पिक नीतियाँ बनाने मे हस्तक्षेप करना भी है, इंडिया गठबंधन में वामपंथियों की महत्वपूर्ण भूमिका है  जिसका असर इंडी गठबंधन के नेताओं के भाषण मे झलकता है ।  ,आज हिमाचल  के  मतदाता को चाहिए की वे किसी एक पार्टी का पिछलगु  न हो कर दोनो नेताओं के भाषण को आधार बना कर देश की बेहतरी के लिए  वोट करने की  सोचें  अगर देखा जाए तो   राहुल गांधी का सम्पूर्ण भाषण आप जनता के मुद्दों से जुड़ा था जिसमे प्रदेश और देश के अंदर चाहे वो मजदूरों किसानो के संघर्ष हो  उसकी का हि नतीजा है की राहुल गांधी अपने   भाषण में आंगनवाड़ी,मिड डे  मील, आशा वर्करज , मनरेगा मजदूर आदि अलग अलग अस्थाई रोजगार मे लगे लोगों की आय दोगुना करने का अश्वासन देता है ,जबकी मोदी का पुरा भाषण व्यक्तिवादी था और उसमे बेरोजगारी , किसान, मजदूर आम आदमी का जिक्र  तक नहीं था बल्कि पुरा का पुरा भाषण नफरती और बिना किसी विजन का था। भाषण में न रोजगार का जिक्र था न किसानों  का और न हि  मजदूर वर्ग और मनरेगा जैसी योजनाओं  के लिए बजट का जिक्र था।

Comments

Popular posts from this blog

वंदना अध्यक्ष और श्यामा महासचिव और किरण भंडारी बनी प्रोजेक्ट पछाद की कोषाध्यक्ष*

तीन माह से केंद्र से नहीं मिल रहा मानदेय, और पोषण ट्रैकर और टी एच आर के लिए हर माह ओ टी पी के नाम पर लाभार्थी भी करते है प्रताड़ित*

मिड डे मील वर्कर्स यूनियन के विरोध के बाद मिड डे मील वर्कर्स की नहीं लगेगी हाजिरी ऑनलाइन