वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

*बाबा साहेब का जीवन एक दुखभरी दास्तान है:___रामेश्वर सिंह

*हमारे संविधान के निर्माता , दलितों के मसीहा , विश्वरत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर जी की १२९वीं जयंती पर कृतज्ञ लाभार्थियों एवं देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं ।* बाबा साहेब का जीवन एक दुखभरी दास्तान है ।     
           जन्म से लेकर मृत्यु तक उन्होंने उत्पीड़न एवं शोषण की मार ही तो झेली । स्कूल में अपना टाट लेकर जाना, बाहर बैठना , छुआछूत के दंश के कारण स्कूल में प्यासे तक रह जाना , नौकरी में अछूत अफसर होने के कारण ,स्वर्ण चपरासी के हाथों अपमानित होना हर जगह अपमान ही अपमान सहते रहना , ये थी उनकी नियति । बड़ौदा के राजा गायकवाड़ तथा साहू जी महाराज की उदार सहायता के कारण , उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में उच्च शिक्षा हासिल की
             बाबा साहेब कहते थे कि जिस देश में वर्णव्यवस्था जैसी मरणव्यवस्था हो ,उस देश में जन्म लेना बहुत बड़ा पाप है । जहां एक मानव दूसरे मानव के साथ जाति के आधार पर भेदभाव और शोषण करें , वहां कैसी मानवता ! मनुवादी व्यवस्था मे सभी वेद ,पुराण ,उपनिषद ब्रह्मसूत्र , स्मृतियां , रामायण व महाभारत में दलितों को सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित किया गया । उन्हें पशु से भी कमतर समझा गया । वे तो तीन उच्च वर्णों के गुलाम थे । वे अच्छे कपड़े नहीं पहन सकते थे , अच्छा खाना नहीं खा सकते थे , सोने चांदी के गहने नहीं पहन सकते थे ।उनके लिए कठोरतम दंड के प्रावधान थे ।बलात्कार ,हत्या और शोषण दलित बहू बेटी की नियति थी । भुक्तभोगी होने के कारण बाबा साहब का अंतर्मन आर्तनाद कर उठा । उन्होने कसम खाई कि वे इस व्यवस्था को खत्म करके रहेंगें ।इस कड़ी में उन्होने मनुस्मृति का दहन किया ,महाड़ सत्याग्रह किया व कालाराम मंदिर मे प्रवेश कर के दिखाया । पुत्र की मृत्यु पर घर न जाकर वे ६करोड़ दलित भाइयों के लिए गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने इंगलैंड रवाना हो गये । सम्मेलन मे गांधी जी ने अछूतों के प्रतिनिधि होने का दावा पेश किया , जिस पर बाबा साहब ने अकाट्य तर्कों के साथ स्वयम् को दलितों का एकमात्र नुमांइदा साबित किया । गांधी जी के विरोध के बावजूद , मुसलमानों व सिखों की तर्ज पर communal award मंजूर करवाया ,जिसके खिलाफ गांधी जी ने आमरण अनशन कर दिया । बाबा साहेब को हिंदुवादियों ने धमकियां देनी शुरू कर दी और उन पर गांधी जी की बात मानने का दबाव डाला । बाबा साहेब को भारी मन से झुकना पड़ा ।इस तरह पूना पैक्ट सामने आया जिसकी टीस उन्हे जीवन भर सालती रही । चूंकि इस एक्ट द्वारा चुने गए प्रतिनिधि दलितों के न होकर अपनी पार्टियों के गुलाम मात्र हो कर रह गये हैं ।
         जातिभेद ,छुआछत व शोषण से तंग आकर उन्होने हिंदु धर्म त्यागने का फैसला कर लिया था । १४ अक्तूबर १९५६ के दिन ७ लाख दलितों के साथ बाबा साहब ने समता बंधुता व स्वतंत्रता पर आधारित बौद्ध धम्म को अंगीकार कर लिया । वर्ष १९४२- ४६ के मध्य उन्हे वायसराय की परिषद मे सदस्य के तौर पर नियुक्ति मिली । CPWD व Labour जैसे महत्तवपूर्ण विभागों का संचालन उन्होने अच्छी तरह किया । RBI , Planning Commission ,Labour laws , Maternity leave जैसे क्रांतिकारी कदमों के लिए वे जाने जाते हैं ।
          उनकी योग्यता एवं विद्वत्ता के कारण ही उन्हें संविधान निर्माण जैसी महत्तवपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी थी ।नेहरू कैबिनेट मे उन्हे कानून मंत्री बनाया गया । महिला अधिकारों की पृष्टभूमि को लेकर संसद मे पेश उनके द्वारा बनाया हिंदु कोड बिल कट्टर सांसदों के विरोध के कारण यूं ही लटकाते रहने के कारण उन्होने मंत्री पद से भारी मन से इस्तीफा दे दिया । अछूत होने की वजह से , योग्यता के बावजूद उन्हे ऐसा मंत्रालय नहीं दिया गया जहां वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते । संविधान मे प्रदत्त आरक्षण के कारण अनुसुचित जाति व जन जाति के लोग IAS ,IPS , डाक्टर , इंजीनियर आदि बड़े बड़े पदों पर आसीन हुए तथा इन वर्गों के लोग विधायक , मंत्री, मुख्यमंत्री , राज्यपाल व राष्ट्रपति तक बने हैं । क्या इतना होने के बावजूद हमारे लोगों ने बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाया है ।यह एक यक्ष प्रश्न है । हमने अपने समाज को वह नहीं दिया जो बाबा साहेब चाहते थे । अपने को स्वर्ण समझने की मृगमरीचिका मे भटक गये हम । बाबा साहेब को पढ़ना तो दूर , उनके विषय में बात करने वाले को हम हेय दृष्टि से देखते हैं । महार जाति से संबंध रखने के कारण उनका जन्मदिन मनाने मे  हमे ग्लानि महसूस होती है ,यद्यपि उन द्वारा प्रदत्त आरक्षण से हमें कोई परहेज नहीं । बाबा साहब ने शिक्षित ,संगठित व संघर्ष करने का आह्वान किया था ।क्या हम संगठित हुए !क्या हमने टुकड़ों में बंटी‌ जातियों के अलग अलग संगठन नहीं बना रखे ? क्या हम सवर्णों की तरह आपस मे छुआछूत नहीं करते ? यही तो मनुवादी षडयंत्र है  हमे आपस मे बांटने का ताकि उनका शासन कायम रहे ।
   बाबा साहब दुखी हो कर कहते थे कि मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया ।इन्होने अपने समाज का कुछ न किया । अगर हमारे कर्मचारी ,अधिकारी व नेता बाबा साहेब के मूल मंत्र शिक्षा संगठन व संघर्ष का कार्यान्वयन करलें तो यह उनके लिए सच्ची श्रद्धांजली होगी ।
  जय भीम जय भारत ।

रामेश्वर सिंह
सैनवाला जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रशासनिक  सेवा से सेवानिवृत


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