*क्या COVID19 के समय में मजदूरों के बदतर हालतों को देख कर भारत में मजदूरों को उनके मजदूर होने पर बधाई दे सकते है ?*
*क्या भारत में मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी और सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी उन्हें और उनके परिवार को दो वक्त की रोटी और अच्छी शिक्षा देने के लिए पर्याप्त है*
*आशीष कुमार आशी*
आज मजदूर दिवस पर पूरी दुनिया में मजदूरों के योगदान को और किसी भी राष्ट्र निर्माण में मजदूरों के योगदान को याद किया जाता है।
परन्तु यदि हम भारत के संदर्भ में देखे तो सर्वप्रथम भारत में 1 मई 1923 को पहली बार मजदूर दिवस मनाया गया था। 1923 से लेकर 2020 तक लगभग 97 वर्षों के दौरान क्या हम मजदूरों की स्थिति और इस कोराना जैसी महामारी के दौरान जो हालत मजदूरों की हुई है और अब भी है क्या हम उनको मजदूर दिवस पर मजदूर होने की बधाई दे सकते है या नहीं?
ये आज महामारी के दौरान की बात नहीं है परन्तु भारत जैसे देश में क्या मजदूरों को सम्मानजनक मजदूरी मिलती है या नहीं?
ये अपने आप में एक गंभीर प्रश्न है और प्रश्न देश के अंदर शासन कर रही सरकारों से भी है कि क्या जब से भारत में मजदूर दिवस मना रहे है उस समय से लेकर आज तक मजदूरों की हालत में सुधार हुआ या उससे भी बदतर स्थिति की और जा रहा है?
क्या मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी या सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी उनके परिवार और उन्हें दो वक्त की रोटी देने में पर्याप्त है?
ये एक ऐसा प्रश्न है जिसको कुछ मजदूर संगठन समय समय पर सवाल उठाते रहते है परन्तु किसी भी सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती।
भारत में मजदूर के संगठित होने को लगभग 100 वर्ष के करीब होने जा रहे है और इन 100 वर्षों मे मजदूरों ने काफी कुछ हासिल किया जिसके लिए लाखों मजदूरों ने अपनी कुर्बानियां भी दी है। परन्तु जब आजादी से पहले मजदूर संगठित हो गए थे, तो प्रश्न ये खड़ा होता है कि तब तो देश के आजाद होने के पश्चात मजदूरों की स्थिति में निरंतर सुधार आना चाहिए था परन्तु आजादी के 70 वर्षों के बाद भी इस लेख के शुरुआत में ही मैंने प्रश्न ये खड़ा कर दिया कि क्या हम भारत में मजदूरों को उनके मजदूरों होने पर बधाई दे सकते हैं ?
इस लेख में सबसे पहला प्रश्न यही था जोकि आजादी के 70 वर्षों तक एक पहेली बना हुआ हैl आजादी के बाद जब ये उम्मीद की जा रही थी कि जैसे जैसे हम आजाद भारत में आगे बढ़ते जाएंगे वैसे वैसे मजदूरों के हालत भी निरंतर सुधरते जाएंगे। परन्तु क्या इन 70 वर्षों में हम इसमें से कुछ हासिल कर पाए या नहीं , जी बिल्कुल कुछ सुधार अवश्य हुए, कानून बने, संगठन बने और मजदूरों के लिए कुछ योजनाएं भी बनी, परन्तु फिर क्यूं कोई ऐसा क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आया जिससे मजदूरों कि जिंदगी और बेहतर हो जाती ? ये प्रश्न हर मजदूर को कचोटता होगा कि वे 70 वर्षों में अपनी सरकारें तो चुनते है परन्तु कुछ राज्यों को अपवाद के रूप में छोड़ दें तो फिर क्यूं ये हालत नहीं बदलते है, जी बिल्कुल ये सब परिवर्तन आता है कि क्या हमारी जो सरकारें चुन कर हम संसद या विधान सभा में भेजते है क्या वे मजदूर वर्ग का नेतृत्व करते हैं क्यूंकि अभी तक हम जो देश में या राज्यों में सरकारों को चुन कर भेज रहे है कुछ अपवादों को छोड़ कर हम शासक वर्ग की सरकारें चुन कर भेजते हैं क्यूंकि हर राजनीतिक दल किसी न किसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिस वजह से मजदूरों के हालत में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुए । जो परिवर्तन और सुधार हुए भी है वे सिर्फ मजदूर वर्ग के संघर्षों के आगे झुक कर सरकारें करती है।अगर हम ,1996 की सरकार के उदाहरण को देखे और उसके बाद सरकार में मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार में कुछ मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली ताकत संसद तक पहुंची तो उस समय में मनरेगा जैसी रोजगार की गारंटी देने वाली योजनाएं भी बनी जों इस बात को दिखाती है कि मजदूरों के पक्ष की नीति मजदूर वर्ग की राजनीति करने वाली सरकारें ही कर सकती है।परन्तु ये मजदूर वर्ग की सरकार स्थाई क्यूं नहीं है , परंतु क्या मजदूरों की एकता स्थाई है ये भी समझना जरूरी है। आज देश में हालत इतने खराब हो गए है कि आज मजदूर वर्ग की सरकार तो छोड़ो बल्कि ऐसी ताकतों का देश में राज स्थापित हो गया है जो निरंतर मजदूर वर्ग की एकता ही नहीं बल्कि पूरी देश को एक अलग ही दिशा में लेे जा रहे है । जिसके प्रभाव से मजदूर वर्ग भी अछूता नहीं है। अगर ये जानने की कोशिश करे कि ऐसी कौन सी ताकत उजागर हो गई है जिसकी वजह से मजदूर वर्ग की एकता पर खतरा हो गया है ? आज देश में लोगों को धर्म के आधार पर जाति के आधार पर क्षेत्र के आधार पर बांटा जा रहा है जिसका असर मजदूर वर्ग के आंदोलन पर भी पड़ा है , जिसका उदाहरण पिछले 6 सात वर्षों में देखने को मिल रहा है जब अधिकांश वर्ग मंदिर मस्जिद हिन्दू मुस्लिम के विवादों में उलझा रहा था तो हमारे देश की मजदूर विरोधी सरकारें मजदूरों को मिलने वाले अधिकारों को खत्म करने में लगी थी। जिसमें कई अधिकार शामिल है इसमें आप चाहे आठ घंटे काम के अधिकार को लेे, या फिर यूनियन बनाने का अधिकार हो, या अपनी मांगों को ले कर हड़ताल पर जाने का अधिकार। इन सारे के सारे अधिकारों को सरकार सीमित ही नहीं बल्कि खत्म करने की कोशिश में है, इसमें सरकारें चाहे कोई भी हो । देश में अधिकांश शासन करने वाली सरकार शासक वर्ग की ही रही है जिनसे मजदूर वर्ग के हित की बात सोचना हास्यप्रद होगा। आज पूरी दुनिया जब मजदूर दिवस मना रही है और covid19 जैसी समस्या से जूझ रहा है जिसका सबसे ज़्यादा प्रभाव पूरी दुनिया के मजदूर वर्ग पर ही पड़ा है। जिसमें भारत जैसे विकासशील देश में जिधर मजदूर वर्ग की हालत पहले से बद्दतर है परन्तु इस संक्रमण काल में ये दयनीय बनी है आज लोकडॉउन में।मजदूरों को वेतन नहीं मिल रहा है ये तो वो लोग है जो ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में काम कर रहे है परन्तु अधिकांश कंपनियों ने तो मजदूरों को मात्र 23 मार्च तक का ही वेतन दिया । परन्तु भारत की बात करे तो अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के आधार पर भारत में 40 करोड़ के करीब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। उनकी हालात का अंदाजा तो लगाया जा ही सकता है परन्तु ये भी अनुमान है कि इस लोक डाउन में कई कंपनियां अपने कर्मियों को वेतन देने से पीछे हट सकती है। भारत में कई राज्यों से 60 लाख से ज़्यादा मजदूर अपने गांव की तरफ और घरों की तरफ जरूर निकला है परन्तु अभी काफी मजदूरों को कैदियों की तरह अलग अलग राज्यों में रखा गया है ताकि अगर स्थिति बिगड़ती है तो उन्हें बंधुआ मजदूरों की तरह उपयोग किया जा सके। जिन मजदूरों ने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका सदियों से निभाई है आज वही मजदूर मजबूर हो कर नाकाम सरकारी तंत्र की तरफ मदद के लिए देख रहा है। आज न तो इस भयावह स्थिति में मिनिमम वेतन का सवाल तो है ही परन्तु सवाल ये है कि मजदूर को जिन्दा रखने के लिए आवश्यक कैलोरी किस तरह मुहैया करवाई जाए। जिसके प्रबन्ध की सारी जिम्मेवारी सरकार की बनती है परन्तु सरकार अपनी इस जिम्मेवारी से बचती नजर आ रही है, तो फिर मजदूरों को किस मुंह से मजदूर दिवस की बधाई दी जा सकती है।परन्तु कुछ राज्यों में तो ये मजदूरों को बंधुआ बनाने की तैयारी में है । जिसका हम सबको विरोध करना चाहिए और आज ये शपथ लेनी चाहिए कि हमे पूरी दुनिया में मजदूर वर्ग की एकता को संगठित करना है और विशेषकर मजदूरों की एकता को तोड़ने वाले शासक वर्ग के भ्रामक प्रचार से भी बचना चाहिए ।
तभी हम "दुनिया के सभी मजदूरों एक हो" के नारे को सार्थक कर सकते हैं।
इन्कलाब जिंदाबाद
आशीष कुमार आशी
7018777397
kumarashish002@gmail.com
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