वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

*सरकार और प्रशासन की अनदेखी है मुख्य वजह*
*कृषि पर आधारित उद्योग लगा कर किया जा सकता है बन्द पड़ी फैक्टरी को भी शुरू*
*टमाटर अदरक लहुसन और दूध उत्पादन में अग्रणी है स्थानीय किसान*
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार के गृह क्षेत्र में 1967 से निर्मित डेयरी फार्म जोकि स्थानीय लोगों को सुदृढ़ करने और गांव के लोगों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिए किया था परन्तु पिछले 54 वर्षों में किसी भी प्रकार से इस संस्थान को सरकारों के माध्यम से कोई खास दिलचस्पी नही दिखाई गई । यशवंत सिंह परमार ने जिस उद्देश्य से ग्रामीण लोगों को सुदृढ़ करने के लिए बागथन में बागवानी विभाग और कृषि विभाग के सौजन्य से फैक्टरी की भी स्थापना की थी जिसका मुख्य उद्देश्य यँहा के लोगों को समृद्ध करना था । बागथन में निर्मित फैक्ट्री में मुरब्बा जूस पहले पूरे देश के अलग अलग राज्यो में भेजा जाता था , परन्तु आज ये फैक्ट्री भी पिछले काफी वर्षोँ से बंद है और करोड़ो की लागत से बना बिल्डिंग भी बेकार पडी है । इस फैक्ट्री के इलावा लोक निर्माण विभाग का सब डीविजन भी दिलमन शिफ्ट कर दिया गया और आज भी ये कोशिश लगातर जारी है डॉ परमार की दुदर्शिता ये दर्शाती है कि ये हमेशा ही कृषि से संबंधित विकास के कार्यों को प्रथमिकता से बढ़ावा देते थे परन्तु आज जिस उद्देश्य से जो मूलभूत सुविधाएं उन्होंने स्थानीय लोगों को देने और क्षेत्र के विकास के लिए बनाई थी आज क्षेत्र की जनता के लिए इन्हें बचाना मुश्किल हो गया है हिमाचल किसान सभा के जिला कमेटी सदस्य और लाना बाका पंचायत के निवासी आशीष कुमार ,और सेवानिवृत अध्यापक श्री गणेश दत्त शर्मा ने जारी एक प्रेस बयान में कहा कि स्थानीय प्रशासन को इस डेयरी फार्म की दशा को सुधारना चाहिए । गणेश दत्त शर्मा और आशीष कुमार ने कहा कि हम अगर बागथन में स्थापित डायरी फार्म की बात करे तो आज ये डेयरी फार्म बन्द होने की कगार पर है प्रशासन और सरकार इस पर किसी भी प्रकार का ध्यान नही दे रही है आज यँहा पर किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं यँहा नही है अधिकतर स्टाफ यँहा नही है अगर यँहा दैनिक भोगी कर्मी की 12 पोस्ट खाली है यँहा पर न कोई स्थाई डॉक्टर है और फार्मासिस्ट की भी एक पोस्ट खाली है, अगर सरकार इस पर ध्यान दे तो यँहा पर किसानों को जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय स्तरीय प्रशिक्षण संस्थानों का निर्माण किया जा सकता है जिससे लोगों का पशुपालन की तरफ रुझान बढ़ेगा , इस डेयरी फार्म में आज पशुओं की संख्या भी कम हो गई जो कि मात्र 4 से 5 के करीब रह गई है। बागथन की पहचान और जो नाम है ये इस ही डायरी फार्म की देन है इस फार्म से सैनधार और धारटी धार की दर्जन पंचायत लाभन्वित होती है । जिसमे डिंगर किन्नर, लानाबाका, परारा , पन्याली , मियूं , मानगढ़,धार टिककरी , जयहार बागथन और बजगा जैसी पंचायतों को लाभ मिलता है। परन्तु आज प्रशासन और सरकार के उदासीन रवैये के चलते ये आज बन्द होने की कगार पर है ।
इसके साथ आशीष कुमार ने कहा कि सरकार और पशुपालन विभाग को चाहिए कि इस संस्थान को अपग्रेड किया जाये ताकि यँहा पर जो बेसिक ढांचा स्थापित है इसको उपयोग में ला कर इसकी क्षमता और यँहा की सुविधाओं को बढ़ा कर यँहा के विस्तारीकरण की और ध्यान देना चाहिए और इसके साथ बागवानी विभाग में सालों से बंद पड़ी बागथन की फैक्ट्री में कृषि पर आधरित उद्योग जैसे कि लहुसन टमाटर अदरक पर आधारित उद्योग लगाये जाये। आशीष कुमार ने बताया कि 25 फरवरी के बाद पूरे इलाके में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा जिसमे सरकार पर किसानों से जुड़े इन संस्थाओं को सही तरीके से चलाने के लिए दबाव बनाया जाएगा और स्थानीय लोगो की मदद से इन संस्थानों को बचाने की कोशिश की जाएगी और किसान और किसानी से जुड़े इन मुद्दों पर किसान पंचयात का आयोजन किया जाएगा ताकि अपने क्षेत्र में डॉ परमार द्वरा स्थापित इन धरोहरों को बचाया जा सके*
Good work
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