जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

किसानों के मुददे लेकर 20 मार्च को विधानसभा कूच करेंगे जिला सिरमौर के किसान


 किसानों के मुददे लेकर 20 मार्च को विधानसभा कूच करेगी किसान सभा




राजगढ़ : गरीब किसानों की भूमि को बचाने के लिए हिमाचल किसान सभा आगामी 20 मार्च को प्रदेश भर में जिला व खंड स्तर से हजारों की तादाद में सरकार के समक्ष रखने के लिए विधान सभा के लिए कूच करेंगे। हिप्र किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष राजेंदर सिंह और जिला अध्यक्ष सिरमौर  सतपाल मान, राजगढ़ ब्लॉक के  सचिव  नैन सिंह , सतपाल  ने आज राजगढ़ क्षेत्र में किसानों की बैठके कर  क्षेत्र के लोगों को   आहवाहन  किया  20 मार्च को  विधानसभा में जिला सिरमौर से सेंकड़ों लोग  शिमला विशाल रैली  में जमीन से जुड़े मुद्दे विशेष रूप से - शामलात , खुदरा-ओ-दरखतान, मलकियत सरकार, चकोतेदार, नौतोड़ के नियमितीकरण, जनजातीय क्षेत्रों में वन अधिकार कानून का सही ढंग से लागू न होना, विस्थापिता गद्दी, गुजरों इत्यादि सहित मुद्दे भी उठाए जाएंगे। उन्होने बताया कि हिमाचल में आम किसान के पास खेती योग्य जमीन केवल दो से चार बीघा ही रह गयी है। प्रदेश में केवल 06 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से एक लाख हैक्टेयर भूमि विभिन्न जल परियोजनाओं में डूब गई । शेष पांच लाख हैक्टेयर भूमि पर 10 लाख 57 लाख किसान खेती करते हैं। लाखों की तादाद में शिक्षित नौजवानों के लिए सरकारी नौकरियां बहुत कम रह गयी हैं। - हिमाचल के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों को छोडकर कहीं उद्योग नहीं हैं जहां युवाओं को रोजगार का


विकल्प मिल सके। उन्होने बताया कि प्रदेश में बेदखली की मुहिम किसानों के लिए नासूर का काम कर रही है। इनका कहना है कि पिछली प्रदेश सरकारों ने 2000, 2002, 2015 और 2018 में लघु और सीमांत किसानों के कब्जे वाली कृषि, बागवानी और मकान बनाने के लिए इस्तेमाल की गई भूमि के नियमितीकरण के प्रयास किए परन्तु केंद्रीय सरकार से इसकी अनुमति नहीं मिली। हिमाचल में ये विशेष परिस्थितियाँ हिमाचल सरकार की 1952 की अधिसूचना, 1980 का वन संरक्षण कानून, 1988 की राष्ट्रीय वन नीतिय 12 दिसंबर 1996 को सर्वोच्च न्यायलय के गोदावर्मन केस मामले में सभी राज्यों को जारी निर्देश 2006 के वन अधिकार कानून के कारण उत्पन्न हुई हैं। दूसरा ओर हिमाचल में हो रहे ढांचागत विकास के तहत किसानों की भूमि और सरकारी भूमि का अधिग्रहण हो रहा है।

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