जातिगत उत्पीड़न के प्रश्न पर सीपीआई (एम) का स्पष्ट स्टैंड उसकी विचारधारा की मज़बूती

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 *रोहड़ू  में सीपीआई(एम ) नेताओं  का  रास्ता  रोकना:-- दलित वर्ग के मनोबल को तोड़ने का प्रयास ।* सीपीआई (एम ) ने जातिगत उत्पीड़न पर खुला स्टैंड ले कर हमेशा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता साबित की है   :-----आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर  हिमाचल प्रदेश की हालिया राजनीतिक घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब भी दलित समाज अपनी एकता, चेतना और अधिकारों के साथ आगे बढ़ता है, तब सवर्ण वर्चस्ववादी ताक़तें बेचैन हो उठती हैं। रोहड़ू क्षेत्र में घटित घटना इसका ताज़ा उदाहरण है — जब 12 वर्षीय मासूम सिकंदर की जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर हुई हत्या के बाद सीपीआई(एम) के वरिष्ठ नेता राकेश सिंघा और राज्य सचिव संजय चौहान पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, तब कुछ तथाकथित “उच्च” जाति के लोगों ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया। यह केवल नेताओं को रोकने की कोशिश नहीं थी, बल्कि दलित वर्ग की सामूहिक चेतना और हिम्मत को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था।अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो जाते, तो यह संदेश जाता कि “जब हमने सिंघा और संजय चौहान को रोक लिया, तो इस क्षेत्र के दलितों की औक...

108/102 कर्मियों का शोषण नहीं चलेगा

 हिमाचल प्रदेश 108 एवं 102 एंबुलेंस कर्मचारी यूनियन संबंधित सीटू ने श्रम कानूनों व न्यायिक आदेशों को लागू करने,न्यूनतम वेतन व कर्मचारियों की प्रताड़ना बंद करने सहित अन्य मांगों को पूर्ण करने के लिए नेशनल हेल्थ मिशन के प्रबंध निदेशक कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में सैंकड़ों कर्मचारी शामिल रहे। इस दौरान आंदोलनकारियों व पुलिस प्रशासन में टकराव हो गया। नौकरी से निकाले गए मजदूरों व ट्रांसफर किए गए मजदूरों को बहाल करने की मांग को लेकर आंदोलनकारी आक्रोशित हो गए व एनएचएम कार्यालय गेट पर कई घंटे डटे रहे। प्रबंध निदेशक के गेट पर आकर सीटू नेताओं से बात करने पर ही धरना खत्म हुआ। प्रबंध निदेशक ने जल्द ही मांगों के समाधान का आश्वासन दिया है। यूनियन ने चेताया है कि अगर शीघ्र ही मांगों की पूर्ति न हुई तो यूनि


यन निर्णायक संघर्ष की ओर बढ़ेगी। यूनियन ने चेताया है कि अगर कर्मचारियों को प्रताड़ित किया गया तो यूनियन के आह्वान पर कर्मचारी गाड़ियां बंद करके हड़ताल पर उतर जाएंगे।


प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, उपाध्यक्ष जगत राम, विवेक कश्यप ने कहा कि मुख्य नियोक्ता एनएचएम के अंतर्गत कार्यरत मेडस्वेन फाउंडेशन के अधीन काम कर रहे सैंकड़ों पायलट, कैप्टन व ईएमटी कर्मचारी भयंकर शोषण के शिकार हैं। शोषण का आलम यह है कि इन कर्मचारियों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता है। इन कर्मचारियों से बारह घंटे डयूटी करवाई जाती है परंतु इन्हें ओवरटाइम वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, लेबर कोर्ट, सीजीएम कोर्ट शिमला व श्रम कार्यालय के आदेशों के बावजूद भी पिछले कई वर्षों से इन कर्मचारियों का शोषण बरकरार है। जब मजदूर अपनी यूनियन के माध्यम से अपनी मांगों के समाधान के लिए आवाज बुलंद करते हैं तो उन्हें मानसिक तौर व अन्य माध्यमों से प्रताड़ित किया जाता है। यूनियन के नेतृत्वकारी कर्मचारियों का या तो तबादला कर दिया जाता है या फिर उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करके नौकरी से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। कई कर्मचारियों को बिना कारण ही कई - कई महीनों तक डयूटी से बाहर रखा जाता है। उन्हें डराया धमकाया जाता है। उन्हें नियमानुसार छुट्टियां नहीं दी जाती हैं। इनके ईपीएफ व ईएसआई के क्रियान्वयन में भी भारी त्रुटियां हैं। कुल वेतन में इनका मूल वेतन बेसिक सेलरी भी कम है। अन्य सभी प्रकार के श्रम कानूनों का भी घोर उल्लंघन हो रहा है।  मेडस्वेन फाउंडेशन से पूर्व ये कर्मचारी जीवीके ईएमआरआई के पास कार्यरत थे। जीवीके ईएमआरआई कंपनी से नौकरी से छंटनी अथवा सेवा समाप्ति पर इन कर्मचारियों को छंटनी भत्ता, ग्रेच्युटी, नोटिस पे व अन्य किसी भी सुविधा का भुगतान नहीं किया गया। इस तरह ये कर्मचारी भयंकर रूप से शोषित हैं। 


उन्होंने मांग की है कि कर्मचारियों को सरकारी नियमानुसार न्यूनतम वेतन का भुगतान किया जाए। बारह घंटे कार्य करने पर नियमानुसार डबल ओवरटाइम वेतन का भुगतान किया जाए। कर्मचारियों को नियमानुसार सभी छुट्टियों का प्रावधान किया जाए। गाड़ियों की मेंटेनेंस व इंश्योरेंस के दौरान कर्मचारियों का वेतन न काटा जाए व कर्मचारियों को पूर्ण वेतन का भुगतान किया जाए। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, लेबर कोर्ट, सीजेएम कोर्ट शिमला व श्रम विभाग के न्यूनतम वेतन के संदर्भ में आदेशों को तुरंत लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 व औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों को दरकिनार करके यूनियन नेताओं की प्रताड़ना की जा रही है। जब मजदूर अपनी यूनियन के माध्यम से अपनी मांगों के समाधान के लिए आवाज बुलंद करते हैं तो उन्हें मानसिक तौर व अन्य माध्यमों से प्रताड़ित किया जाता है। यूनियन के नेतृत्वकारी कर्मचारियों का या तो तबादला कर दिया जाता है या फिर उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करके नौकरी से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। कई कर्मचारियों को बिना कारण ही कई - कई महीनों तक डयूटी से बाहर रखा जाता है। उन्हें डराया धमकाया जाता है। इसे तुरंत बंद किया जाए तथा कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 19 व अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा की जाए। उनके तबादलों को तुरंत रद्द किया जाए। कर्मचारियों के ईपीएफ व ईएसआई के क्रियान्वयन में भी भारी त्रुटियां हैं। इन्हें तुरंत दुरुस्त किया जाए। कुल वेतन में कर्मचारियों का मूल वेतन बेसिक सेलरी भी कम है। इसे दुरुस्त किया जाए। मेडस्वेन फाउंडेशन से पूर्व ये कर्मचारी जीवीके ईएमआरआई के पास कार्यरत थे। इन कर्मचारियों के लिए या तो सेवा की निरंतरता व वरिष्ठता की सुविधा दी जाए या फिर जीवीके ईएमआरआई कंपनी से कई वर्षों की नौकरी के उपरांत छंटनी अथवा सेवा समाप्ति पर इन कर्मचारियों को जो छंटनी भत्ता, ग्रेच्युटी, नोटिस पे व अन्य सुविधाओं का भुगतान नहीं किया गया है, उसका तुरंत भुगतान किया जाए। मेडस्वेन फाउंडेशन व जीवीके ईएमआरआई के पास नौकरी के दौरान कर्मचारियों को जो कम वेतन भुगतान किया गया है, उसके कानूनी एरियर का तुरंत भुगतान किया जाए। सभी प्रकार के कानूनों को लागू किया जाए।


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