मास्क
टर्न -टर्न -टर्न । अचानक मोबाईल की घंटी बज उठी । मेंने अनमने सा मोबाईल अपने पास सरका दिया । जितने में फोन सुनने को हाथ बढ़ाया कि फोन कट गया । कमरे की खिड़की से बाहर झाँका तो सूरज की किरणें मेरे बिस्तर पर खेल रही थी । मेंने सामने दीवार पर घड़ी पर नजर डाली तो वे सुबह के 8:30 बजे बता रही थी । जबसे मेँ कोरोना वायरस के आतंक के कारण परिवार सहित अपने गाँव आया हूँ तब से ईसी तरह आराम से उठता हूँ । मेंने ये जानने कि उत्सुकता मेँ फोन को देखा कि आज किसने सुबह -सुबह याद किया हें । मेँ मिसड कॉल देख कर चौंक गया । अरे पंडित जी , वे भी इतनी सुबह । पंडित जी मेरे पुराने मित्र हे । एक बहुत ही नेक दिल इंसान हे । हम दोनों अच्छे मित्र हे परन्तु हमारे विचारों मेँ छतीस का आंकड़ा हे । वे ठहरे आस्थावान , पूजापाठी , कर्मकांडी ओर मेँ हूँ विज्ञानिक सोच को मानने वाला नास्तिक , अन्धविश्वास ओर कर्मकांड का घोर विरोधी ।
मेँ सहम गया था । मुझे पूरा यकीन था कि इन्होंने अवश्य ही फेसबुक पर मेरी इनकी विचारधारा की बखिया उघाड़ने वाली मेरी कोरोना वायरस पर कविताएं पढ़ी होंगी उसी पर मुझसे चर्चा चाह रहे होंगे । मेँ भी पूरी तरह दो -दो हाथ करने के मूड मेँ था । मेंने तुरंत कॉल बेक की । उधर से आवाज़ आई ...हेलो । मेंने सीधा अभिवादन किया । पंडित जी नमस्कार ...नमस्कार जी । उन्होंने उसी विनम्रता से जवाब दिया । सुना हे तुम गाँव आये हो ‘ उन्होंने पूछा । मेंने प्रत्युतर मेँ कहा – ‘बिल्कुल सही सुना हे आपने । केसे याद किया आज सुबह -सुबह । ‘ बस थोड़ा सा काम था , ये बताओ तुम शहर से कुछ मास्क तो लाए ही होंगे । मेँ ये सुन कर चौंक गया पर सहजता से पूछ लिया , क्या मास्क ,हाँ -हाँ भाई जरा तीन -चार मुझे भी भिजवा देना । मेँ जरागंभीर होते हुए बोला –‘ पंडित जी क्यों मजाक करते हो । आप ओर मास्क । आप जेसे पहुँचे हुए पंडितों को मास्क कि क्या जरूरत भला । ये तो हम जेसे नास्तिकों के लिए जरूरी हे । आप तो पहुँचे हुए ब्रह्मज्ञानी हो । भगवान से आपका सीधा सम्पर्क हे । असंख्य देवी देवता आपमें खेलते हे । आप अपने इलाके के इतने लोगों के अनेक दुख -दर्द को तंत्र -मंत्र के द्वारा ठीक करते हो । मेँ तो बस अपनी पूरी भड़ास निकाल रहा था कि उन्होंने मेरी बात काटते हुए बोला । अरे यार , मजाक नहीं कर रहा हूँ । कोरोना वायरस सुना हे काफी खतरनाक हे । समूचे यूरोप में इसने हाहाकार मचा रखा हे । लाखों लोग इसकी चपेट में हें । सीधा ईसा मसीह से सम्पर्क रखने वाले पादरी ओर दुनियाँ भर के काले -सफेद जादू के जानकार मौलवी भी इसका कुछ नहीं कर पा रहे हें । अब हमारे देश में तो पहले ही बहुत सारे भगवान हें ओर असंख्य देवी -देवता । ऐसे में क्या पता किसकी आराधना काम आएंगी ओर किसकी नहीं । मेँ ज्यादा जोखिम नहीं ले सकता हूँ । खुद को चलो भगवान भरोसे छोड़ भी दू पर बच्चों को नहीं छोड़ सकता हूँ । अरे पंडित जी आपने तो ये सब कह कर मेरा भी दिल तोड़ दिया । हमारा विज्ञान तो इसका अभी तक कोई टिका या दवाई नहीं खोज पाया । मेंने तो सोचा था कि अबकी बार तो आपकी ही मदत लेनी पड़ेंगी । आप इतने बड़े पंडित हो चुटकी मेँ चावल के चार दाने दे कर , एक ताबीज बना कर , हवन कर या भागवत कर लोगों के आज तक दुख दूर करते आये हो तो अब भला ये कोरोना क्या बला हें आपके लिए । मजाक कर रहा हूँ बुरा मत मानना । आप लोगों की कुंडली देख कर या हस्त रेखा देख कर या देवता की हवा आने पर उनके बारे मेँ बताते हो तो आप जब कोई आदमी खो जायँ जेसे अभी चूड़ धार के जंगल में एक लड़की खो गयी थी या गाँव की एक महिला , या आंधी -तूफान , भूकम्प , या कोरोना जेसी महामारी के बारे में पहले ही क्यों नहीं बताते हो । । सच बोलना क्या आप भी केवल व्यापार करते हो । पंडित जी पहली बार मेरी ऐसी बेहूदी हरकत को बर्दाश्त कर गये ओर कहने लगे अच्छा तो आज तुम्हें भी मौका मिल ही गया । मेंने बड़े विनम्र हो कर जवाब दिया । पंडित जी मेँ तो हूँ मूर्ख । मेँ जानता हूँ कि आप मेरी बातों का बुरा नहीं मानते । उन्होंने भी एक ठंडी आह भर कर कहा -अरे छोड़ो ये सब इस कोरोना ने तो सारा धंदा चौपट कर दिया । पूरे नवरात्रे कोरोना की भेंट चढ़ गये । अरे पंडित जी आप ये क्या कह रह हो । पूरी दुनियाँ की अर्थव्यस्था रसातल मेँ चली गयी मेँ ये तो मान सकता हूँ परन्तु आप तो भगवान के भक्त हो आपका भला क्या नुकसान हुवा । इस बार वे थोड़ा झल्ला उठे । बस करो सारे लोग तुम जेसे नास्तिक नहीं हें । अभी बहुत सारे भक्त आस्थावान लोग हें जिनकी आस्था पर हमारा करोबार चलता रहता हें परन्तु इस कोरोना ने तो हमारा भविष्य ही खतरे में डाल दिया हें । तुम्हारे जेसे कई नास्तिको ने जीना हराम कर रखा हें । रोज पूछते हें कि जब ये ईसा , अल्लाह ओर भगवान हमारी ऐसे समय में मदत नहीं कर सकते तो कब काम आएंगे ओर ये असंख्य देवी -देवता जिनके गुर उनके वाहक बन कर लोगों की थोड़ी बहुत मदत करते रहते हें परन्तु इस कोरोना में क्यों नहीं मदत कर रहे ? क्या ये सब लोगों को भरमाने का जरिया हें ? इस तरह के असंख्य सवाल लोग आजकल पूछने लगे हें । । लोगों का इस कोरोना की वजह से इन सब कर्मकांडों पर से विश्वास उठने लगा हे । भला हो इस सरकार का जिन्होने भले ही मंदिर -मस्जिद तो बंद करवा दिए परन्तु कम से कम रामायण ओर महाभारत तो शुरू करवा दी । लोगों के मन में कुछ तो आस्था बनी रहगी वरना हमारा तो सारा धंदा ही चौपट हो जाना था । आज तो बीवी ने भी धमकी दे दी -ये तंत्र -मंत्र अपने पास रखो ओर मेरे ओर बेटे के लिए तो मास्क ला दो । अब भला जब पूरे विश्व के पंडे -पुजारी , मौलवी ओर पादरी इस कोरोना का कुछ नहीं कर पा रहे तो मेँ भला क्या कर सकता हूँ । इसलिए मेँ तो दिन रात महामृत्युंजय का जाप करता रहता हूँ तब तक तुम्हारा विज्ञान कुछ तो दवा -दारू ढ़ूँढ़ ही लेंगा तब हम कहँगे ये हें हमारी देविय शक्ति का चमत्कार । अरे ये सब छोड़ ये बता मास्क लाया हें कि नहीं । मेंने भी आज अपने जी की सारी भड़ास निकाल ली थी तो बड़े विनम्र हो कर जवाब दिया -लाया हूँ भाई , शाम तक चार भिजवा दूँगा । । अपना ओर परिवार का ख्याल रखना । बार -बार साबुन से हाथ धोना । नाक , मुँह ओर ओर चेहरे को मत छूना । घर मेँ ही रहना । सामाजिक दूरी बनाए रखना । सतर्कता ही सुरक्षा हें । नमस्कार ।
डॉ ईश्वर राही ।
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