वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

----------आशीष कुमार---------
सरकार के मिशन रिपीट की तैयारियों के चलते प्रदेश के जिला सिरमौर के ट्रंसगिरि क्षेत्र के अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के चेहरे पर एक अनकही चिंताओं को बढ़ा दिया है , जिसका जिक्र कुछ अनुसचित जाति वर्ग के बुद्धिजीवी कर रहे है , परन्तु इन 154 पंचायतों में जो इस वर्ग की चिंता है वो किसी से छुपी नही है । मगर सरकारों और तथाकतीत सभ्य समाज के सामने ये चिंताए अदृश्य ही रहती है , या तो वो लोग इसको जान कर अदृश्य करते है या फ़िर शोषण कारी व्यवस्था को कायम रखने के लिए ये ऐसा करना आवश्यक समझते है। जब हम इस विषय पर विश्लेषण कर रहे है तो हमको सबसे पहले ये जानना जरुरी है कि जिस विषय मे ये बात चल रही है सही मायने में वो है क्या जिसको हम उसकी परिभाषाओं और उस क्षेत्र की विशेषताओं से समझ सकते है
*जनजाति का अर्थ और परिभाषा*
अगर हम जनजाति की परिभाषा को समझे तो ये कहा जाता है कि विशेष भौगोलिक स्थान पर रहने वाले लोगों का समूह है जिनके समान पूर्वज है , समान संस्कृति है , समान भाषा है , समान पहनावा हैऔर जो समूह बना कर रहते है और समान देवता की पूजा करते है और ये एक बन्द समाज है और ये इसको बनाये रखना चाहते है , इनका कोई एक पूर्वज होता है या ये किसी काल्पनिक शक्तियों को अपना पूर्वज मानते है । अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि यदि ये सभी सजातीय समूह है ,तो क्या जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र क्या वंहा रहने वाले सभी लोगों पर ये नियम लागू होता है , जब सबके पूर्वज और देवता एक है तो फिर क्यों वंहा की 40 प्रतिशत आबादी को आज भी मंदिरों में प्रवेश नही करने दिया जाता , जबकि मंदिरों में उपयोग होने वाले वाद्य यंत्रों को यही अनुसूचित जाती वर्ग के लोग अपनी पीठ पर ले कर घूमते है । कई मर्तबा तो कुछ लोगों की कार्य शैली से ये जाहिर भी होता है की वंहा पर रहने वाला दलित समाज को यँहा के ये शोषणकारी लोग अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को एक वस्तु कि तरह समझते है , और जातियों के आधार पर उन्हें अपने खेतों में काम करने के लिए एक वस्तु मात्र समझ कर रखा जाता है बल्कि उस पर अपने स्वमित्व का हक भी जताया जाता है। ये सारा घटना क्रम इस ही क्षेत्र का है जिसको सजातीय होने का दावा किया जा रहा है और इस ही आधार पर जनजातीय होने का दावा किया जा रहा है।
*सजातीय समूह होने का दावा और धरातल पर वास्तविकता*
जिस क्षेत्र की जनजातीय क्षेत्र की मांग की जा रही है सुना है वंहा भी जो 3 लाख की आबादी वंहा निवास करती है उसको भी सजातीय समूह होने का दावा किया जा रहा है , जनजातीय क्षेत्र के लिए उस क्षेत्र के पिछड़ेपन से भी ज्यादा ये शर्त होना आवश्यक है , सजातीय समूह के होने के जो दावे किये जा रहे है इसकी सच्चाई ये है कि आए दिन अनुसूचित जाति वर्ग पर हो रही उत्पीडनकी घटनाएं उस दावे को खोखला कर देती है। उत्पीड़न के दावे कोई खोखली बातें नही बल्कि सरकारी आंकड़े बताते है कि पिछले 2018 से लेकर 2022 तक उत्पीड़न के केस जिला सिरमौर में हुए है जिसमे से 116 में से 110 इन्ही 154 पंचायतों के है , ये वही क्षेत्र है जंहा ठारी देवी के मंदिर में जाने पर एक दलित युवक राजेन्द्र को इतना पीटा जाता है जिसमे उसकी पसलियाँ टूट जाती है और अंततः उसकी मृत्यु हो जाती है , ठीक ऐसी ही घटना आर टी आई एक्टिविस्ट जिन्दान के हत्या कांड का मामला है, ये कुछ महत्वपूर्ण और मानवता को झँकझोर देने वाली वारदाते है, ये 110 तो मात्र वो है जो रजिस्टर हुए है ना जाने कितनी अदृश्य उत्पीड़न की घटनाएं यँहा होती है जिन्हें या तो देवता के डर दिखा कर दबा दिया जाता है या फिर गाँव के अन्दर ही दबा दिया जाता है।
*लोकुर समिति के पांच मापदण्ड*
1965 में लोकुर समिति ने जो पांच मापदण्ड तय किये थे जैसे कि आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, अन्य समुदायों के साथ संपर्क में संकोच, पिछड़ापन, परन्तु ये पाँच मापदंड जो तय किये गए थे ये उस क्षेत्र की जनजातीय समूहों के लिए तय किये गए थे जो वास्तव में सजातीय है , इन 154 पंचायतों में जातिवाद चरम सीमा पर है छुवाछुत है, सजातीय समूह में जो एक देवता की पूजा की बात की जाती है मगर यँहा 40 प्रतिशत आबादी को मंदिर में जाने की ही अनुमति नही , खाने की व्यवस्था सामूहिक समारोह में अलग की जाती है बल्कि एक जाति विशेष को खाने पीने के लिए दूध तक नही दिया जाता,उच्च जाति के घर तो छोड़ो आंगन तक में वे नही जा सकते, हरे रंग की टोपी तक नही लगाने दी जाती अगर लगाते भी है तो उच्च जाति के आँगन या सामने उतारनी पड़ती थी, यदि कोई ऐसा कर देता है तो देवता के नाम पर उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाते है,जिसमे हम कह सकते है कि खाप पंचायतों की तरह एक तरफा कानून थोप दिए जाते है, लोकुर समिति ने जनजातीय क्षेत्र के लिए जो पाँच मापदण्ड तय किये थे मुझे नही लगता कि इस पर भी चर्चा हुई होगी कि खासकर हिमाचल और जौनसार के अंदर किस तरह से सजातीय होने के जो दावे किये जाते है वे दावे वंहा पर जाति आधारित उत्पीड़न को देख कर स्वतः ही खारिज हो जाते है। लोकुर समिति के बाद भी इस से संबंधित कमेटियां बनी होगी मगर किसी भी कमेटी ने जनजातीय क्षेत्रों खहस कर जो स्थिति हिमाचल और उत्तराखंड में है कि किस तरह यँहा जनजातीय होने के बावजूद भी ये समाज जातियों पर बंटा हुआ है , जनजाति घोषित करने का पहला मापदण्ड सजातीय समूह को यँहा इन 154 पंचायतो में विद्यमान जाति व्यवस्था और उसमे जाति आधारित उत्पीड़न ही नकारने के लिए काफी है
*सजातीय होने का दावा एट्रोसिटी एक्ट को निष्प्रभावी बनाने और विशेष वर्ग को प्रतिनिधित्व से वंचित करना*
इस ही क्षेत्र में स्वर्ण समाज का आंदोलन भी चरम पर है , ये आंदोलन एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण को खत्म करने के उद्देश्य से रेणुका क्षेत्र में ज़्यादा सक्रिय रहा , खास कर दलित शोषण मुक्ति मंच की जिन्दान हत्याकांड के बाद सक्रियता और शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए दलित शोषण मुक्ति मंच ने इस क्षेत्र के लोगों को लामबंद भी किया और प्रेरित भी किया जिसके बाद जब शोषण कारी विचार को शोषितों की एकता से धक्का लगा तो इस तरह शोषण कारी व्यवस्था और उसका नेतृत्व करने वाले लोगों में शोषण के प्रति उठ रहे स्वरों को दबाने की कोशिशें शुरू हो गई ,जनजातीय क्षेत्र की माँग भले ही एक लंबे अरसे से चली हो मगर 2021 के बाद मात्र आरक्षण वो भी अनुसूचित जाति वर्ग को मिलने वाला शोषणकारी लोगों को अखरने लगा , क्योंकि अब इन क्षेत्रों से दबे कुचले लोगों पिछले 74 वर्षों के बाद धीरे धीरे कंही न कंही मुख्यधारा में अनुसूचित जाति वर्ग और पिछड़ा वर्ग से काफी हद तक उच्च पदों और सरकारी नौकरियों में लोग निकलने शुरू हो गए , इसलिए आरक्षण का विरोध और अयोग्य कह कर कोसने की प्रक्रिया भी सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी पर चलने लगी, इसी बीच क्षत्रिय संगठनों ने जनजातीय क्षेत्र का खुला समर्थन शुरू कर दिया, जो अब तक पर्दे के पीछे चल रहा था, ये वही क्षत्रिय संगठन है जो आरक्षण का विरोधी है और इसी संगठन में वही अधिकांश लोग शामिल है जो हाटी समिति का भी सर्मथन कर रहे है ।इससे ये साफ झलकता है कि यही लोग मात्र अनुसचित जाति वर्ग के आरक्षण का विरोध करते है न ये ओबीसी आरक्षण पर कुछ कहते न ये EWS के आरक्षण के बारे में बात करते , इनकी जुबान पर मात्र एट्रोसिटी एक्ट के विरोध और अनुसूचितजाति वर्ग को मिलने वाला आरक्षण है । यही लोग फिर हाटी समिति के माध्यम से आरक्षण की।मांग भी करते है यही दोहरे मापदण्ड है जो ये साफ जाहिर करते है कि ये सजातीय होने का दावा मात्र एट्रोसिटी एक्ट के विरोध करने और अनुसूचित जातियों को मिल रहे प्रतिनिधित्व के लाभ से वंचित करने तक ही सीमित है।
*हाटी समिति का बजट से संबंधित नजरिया*
जंहा हाटी समिति के लोग जो बार बार ये कह रहे है कि इस क्षेत्र के जनजातीय होने से अत्तिरिक्त बजट आएगा , उसके संदर्भ में हम सरकार को और हाटी समिति को ये सुझाव देते है कि यदि इस तरह की का ये विकास की दुहाई दे रहे है वैसे तो आज अगर विकासात्मक कार्यों की बात करे तो 154 पंचायतो में विकास के स्तर में भी वृद्धि हुई है ।आज पंचायतीराज प्रणाली के माध्यम से हर पंचायत तक विकास पहुंच रहा है बशर्ते कि उसको सही तरीके से लागू किया जाए। हाटी समिति के पदाधिकारी बार बार विकासात्मक कार्य और अत्तिरिक्त बजट की बात कर रहे है यदि उनका मक़सद मात्र विकासात्मक कार्य के लिए अतिरिक्त फंड के प्रावधान के लिए ही जनजातीय करना है तो क्यों न सरकार नीति आयोग के माध्यम से 2007 -08 की तरह बैकवर्ड रीजन ग्रांट फण्ड ( BRGF) का प्रावधान करवा कर मात्र इन 154 पंचायतों को ही शामिल कर दे जबकि 2007-08 में तो ये फण्ड पूरे जिला चंबा और सिरमौर में दिया जाता है । सरकार और हाटी समिति की यदि विकास को ले कर ही मंशा है तो इसका समाधान ये हो सकता है । परन्तु विकास की दृष्टि से अगर आज देखें चाहे राजगड है, संगड़ाह है , शिलाई है , हर जगह 2 से 3 महाविद्यालय अन्य शिक्षण संस्थान, आई टी आई, और भी व्यवसायिक शिक्षण संस्थान बन चुके है , शिलाई जैसे क्षेत्र में दो - दो SDM कार्यालय खुल गए है , हाटी समिति और भी उनका बुद्धजीवी वर्ग जो अस्पृश्यता खत्म करने के लिए जनजागरण अभियान की बात कर रहा है ये मात्र अनुसूचित जाति के लोगों को बरगलाने का काम कर रहे है , इससे पहले भी आर्टिकल 19 में इस बात को साफ साफ लिखा है ये कैसी जागरूकता फैलाएंगे क्या जनजातीय होने के बाद ही ये सब करने की सोचेंगे उनके बुद्धिजीवी वर्ग को ये तो पहले सोचना चाहिए था क्योंकि ये बात तो भारत का संविधान
कहता है यदि वास्तव में ही ये क्षेत्र और अनुसूचित जाति वर्ग के हितैषी है तो शोषण से बचाने वाले एट्रोसिटी एक्ट और प्रतिनिधित्व प्रदान करने वाले अधिकारों को खत्म न होने की भी साथ मे मांग क्यों नही करते ।विकासात्मक कार्यों की अगर चिंता है BRGF जैसे फण्ड की तर्ज पर कोई अन्य अनुदान की व्यवस्था केवल इन 154 पंचायतो के लिए की जा सकती है।
*अनुसूचित जाति वर्ग की समस्याएं और भविष्य की चुनौतियां*
आज अगर खास कर हम इस ट्रंसगिरी क्षेत्र में रह रहे अनुसचित जाति वर्ग के लोगों की बात करे वैसे तो ये समस्या पुरे हिमाचल प्रदेश और देश के अंदर है , मगर इस क्षेत्र के अंदर तो यँहा अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के समक्ष भारतीय संविधान में हर तरह के बराबरी के अधिकार प्राप्त होने के पश्चात भी यँहा अगर देखा जाए तो संविधान के किसी भी अधिकार का यँहा फायदा नही मिल पा रहा है । यदि ये जनजातीय क्षेत्र घोषित हो जाता है तो निश्चित रूप से कागजों और सरकारी फाइलों में इसको सजातीय होने का दावा किया जाएगा ,जिसका सीधा नुकसान यँहा की अनुसूचित जाति वर्ग के लिए होगा , क्योंकि सजातीय होने का मतलब वंहा पर सुरक्षा के मिलने वाले कुछ प्रावधान है जैसे कि एट्रोसिटी एक्ट वे भी स्वतः समाप्त हो जाएगा ,सजातीय होने का अर्थ ये कतई नहीं है कि यँहा पर सब अच्छा हो जाएगा बल्कि इसके विपरीत यँहा पर शोषणकारी व्यवस्था इतनी निरंकुश हो जायेगीं क्योंकि कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करने वाला प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटी एक्ट के लागू रहने से यँहा रह रहे अनुसूचित जातियों ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया है , जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिलने के बाद इस अधिकार का उपयोग नही हो पाएगा , जिससे जातीय उत्पीड़न और अत्याचार करने वालों के होंसले चरम सीमा पर पहुंच जाएंगे।
आज भी इस क्षेत्र में उच्च जातियों के लोगों का अनुसूचित जाति वर्ग में इतना हस्तक्षेप या भय है की अनुसूचित जाति वर्ग के लोग इनके प्रभाव के चलते इतने लाचार है कि की अपने अधिकारों जो हजारों वर्षों की गुलामी के बाद सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिए है उनके निष्प्रभावी होने के फायदे गिना रहे हैं।ये इस बात का प्रमाण है कि आज भी अनुसूचित जाति वर्ग उक्त क्षेत्र में उच्च जातियों की मानसिक गुलामी कर रहा है ।
आशीष कुमार
संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर हिमाचल प्रदेश
Email...kumarashish002@gmail.com
If the political professionals of the state of Himachal Pradesh are of the view that the development of Trans Giri area can only be achieved through an enactment of the nature of some sort of Tribal Status to the demography of the area then they must go through the contents of the article written by Mr. Ashish and think positively for some another remedial step making certain provisions in the budget.
ReplyDeleteयह लोग तो कहते है कि बिना आरक्षण वाले इंटेलिजेंट होते है ।
ReplyDeleteजनजाति श्रेणी में आने के लिए घुटने पर आ रहे है इनसे लिखित में लेना होगा की हम कभी आरक्षण के ऊपर टिप्पणी नहीं करेंगे ।