वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*

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*वेलफेयर डिपार्टमेंट का कार्य देने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मुख्य उदेश्य होंगे प्रभावित*   *जब काम ही आंगनवाड़ी वर्कर ने करना है तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का नहीं है कोई औचित्य* *आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के हितों का हो संरक्षण* *Press note:----* आंगनवाड़ी वर्करज एवं हेल्परज यूनियन संबंधित सीटू की राज्य अध्यक्ष नीलम जसवाल और वीना शर्मा ने जारी एक प्रेस ब्यान में कहा की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर वेलफेयर विभाग का काम थोपने का निर्णय अत्यधिक चिंताजनक है।  कार्यकर्ताओं से अतिरिक्त काम करवाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इससे बाल विकास विभाग के कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वीना  शर्मा , नीलम जसवाल  ने बताया की  आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल करना है, न कि वेलफेयर विभाग के कार्यों को संभालना। यदि वेलफेयर विभाग का कार्य भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ही करना है  तो तहसील कल्याण अधिकारी के पद  का क्या औचित्य और वेलफेयर डिपार्टमेंट का क्या कार्य रह जाता...

वँचित वर्ग के आर्थिक सामाजिक सशक्तिकरण के लिए धरातल पर नहीं है कोई योजना*


 *वँचित वर्ग के   आर्थिक सामाजिक सशक्तिकरण के लिए   धरातल पर नहीं है कोई योजना*



*पिछले कई वर्षों के  बजट वंचित  वर्ग के आर्थिक, सामजिक सशक्तिकरण की खोलते है पोल*

                                      (आशीष कुमार ) हि०प्र० 

                                        

वित्तीय वर्ष 2025-26 में भी अनुसूचित जाति जनजाति वँचित वर्ग को वही हासिल हुआ जो पिछले कई  वर्षों से चले आ रहे बजट में देखने को मिलता रहा । देश का वँचित वर्ग 144 वर्ष बाद आये महाकुम्भ में डुबकी लगा कर अपने सनातनी होने का प्रमाण देता रहा और पूंजीपति और ब्राह्मणवादी  मीडिया नये  आई आई टियन बाबा का महिमा मंडन  करके बाबा अभय सिंह की निराशा की कहानी को युवाओं के लिए एक सनातनी होने के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में महिमा मंडित करता रहा । इसी बीच  मीडिया की कहानी का शीर्षक बदलता है और   1 फरवरी को केंद्रीय वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में तेलगु कवि गुरुजादा अप्पाराव की पंक्तियों को पढ़ कर ये दिखाने की कोशिश करी की ये बजट आम आदमी के लिए होगा पंक्तिया कुछ इस प्रकार थी की *एक देश उसकी मिट्टी ही नहीं बल्कि उसके लोग है* सभी को ये एहसास होने लगा की बजट आम आदमी के पक्ष में है और इसी बीच 12 लाख  इनकम टैक्स की छुट की ऐसी हेडलाइन मीडिया हॉउस में चली की बजट की चर्चा में देश की आबादी का 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति जनजाति का तपका  उस बहस का हिस्सा ही नहीं बन पाया। दलित आदिवासियों के लिए बजट 2025-26 का और पिछले तमाम बजटों  का यदि  विश्लेषण किया जाय तब पता चलता है की दलित वर्ग के लिए सशक्तिकरण के दावे वास्तविकता से परे है,वँचित वर्ग के लिए बजट मात्र एक मुखौटा है जो ऊपर से कुछ है और असल  में  जब मुखौटा उतरता है तो चेहरा कुछ और निकलता है। नीति आयोग के अनुसार बजट का आबाँटन जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए यदि  हम 2011 की जनसंख्या को ही आधार माने तो अनुसूचित जाति वर्ग की 

जन संख्या 16.6 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति वर्ग की जनसंख्या 8.6 प्रतिशत है जोकि कुल आबादी का 25 प्रतिशत के करीब बनता है और बजट में इस 25 प्रतिशत आबादी के लिए महज 3.4 प्रतिशत ही  आबंटित किया गया है। जोकि वँचित वर्ग के उत्थान के लिए सरकारी दावों की पोल खोल देता है। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने शिक्षा और रोजगार में बराबर अवसर देने की बात कही थी और शायद फिर इसी कड़ी में 1974-75 की पंचवर्षीय योजना में में अनुसूचित जाति जन जाति उपयोजना का जिक्र आया और आगे बढ़ते बढ़ते 2017 में मोदी सरकार ने इस योजना का नाम बदल कर अनुसूचितजाति  कल्याण मद कर दिया ,इस योजना का लक्ष्य और उदेश्यों को यदि हम देखे तो इसका मकसद अनुसूचित जाति को सामजिक सशक्तिकरण शैक्षिक विकास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए उनकी आय और रोजगार को बढ़ावा देना था। योजना का लक्ष्य था की अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के कौशल विकास किया जायेगा  और कौशल विकास के लिए बजट का 10 प्रतिशत खर्च करना अनिवार्य  है परन्तु वास्तविकता कुछ और निकलती है , इस योजना के तहत योजना के बजट में लगातार कटौती देखी जा रही है  इस साल के बजट में भी  अनुसूचित जाति के ले लिए 168478.38 करोड़ का बजट आबंटित किया गया है जो पिछली बार आबंटित 165500.05 करोड़ से कुछ ज़्यादा है। यदि 5 फीसदी मुद्रा सफीती  को ध्यान में रखा जाए तो  ये एक तरह से कम ही है, ये गौर करने वाली बात है की पिछले बजट में से महज 138362.52 करोड़ ही खर्च हुए। महत्वपूर्ण ये है की कम आबंटन के बाद बजट न तो खर्च हो रहा है और न ही वँचित वर्ग को इसका लाभ मिल पा रहा है । विश्वगुरु का सपना दिखाने का सपना दिखाने वाले देश के बजट में  देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों  में बजट घटाया गया है यदि  हम आई आई टी हैदराबाद की बात करे तो मात्र तो यंहा पर आबंटित बजट शून्य कर दिया गया और आई आई एम जैसे संस्थान में बजट ,20.63 करोड़ से घटा कर 15.44 करोड़ कर दिया है ये मात्र यंही नहीं रुके बल्कि इंडियन इंसिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एन्ड रिसर्च के लिए 103.79 करोड़ से घटा कर ,94.73 करोड़ कर दिया है और नेशनल इंटिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी  के बजट को 456.45 करोड़ से घटा कर 398 करोड़ के आस पास लाना ये विश्वगुरु बनने के लुभावने ख्यालों की पोल खोलता है।  इसके साथ ही प्रधानमंत्री की महत्वपूर्ण योजना जिसका ढिंढोरा पीटा  जाता रहा है  उस स्कील इंडिया के बजट में 15 करोड़ की कटौती और महत्वपूर्ण दूरगामी  आर्टिफिशल इंटेलिजेंस में अनुसूचित जाति वर्ग के बजट में 42 करोड़ से  कर 32.94 करोड़ कर दिया है।


और बजट में वित मंत्री यही नहीं रुकी  बल्कि प्रधानमंत्री जी के भारत को कुशल श्रमिकों  की मंडी बनाने का जो दावा   था  उसका हश्र तो तब नजर आ गया जब आई आई टी और आई आई एम जैसे संस्थानों के बजट में कटौती की गई  , ये कटौती इस बात का जिक्र करती है की  शिक्षा सरकार की प्रथमिकता है ही नहीं , क्योंकि इनका मुख्य ध्यये लोगों को धार्मिक जंजालों  में फसा कर पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करनी है। जिसका  श्रेय ये अभय सिंह जैसे मानसिक बिमार  व्यक्ती को आई आई  टी एन  बाबा के रूप में प्रचारित कर सनातन के रक्षक का ओहदा दे कर महिमा मंडित कर  अपने देश की शिक्षा व्यवस्था और मेंटल हेल्थ जैसे विषय में संजीदगी न दिखा कर अपना पल्ला झाड़ देना है,इसके साथ अगर हम कृषि के बजट पर भी बात करें तो पाएंगे की जंहा कृषि के बजट को ग्रोथ इंजन बताया गया वही अनुसूचित जाति के किसानों को बजट में भारी कटौती की गई अनुसूचित जाति वर्ग के लिए कृषि में खर्च होने वाले प्रमुख मद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में करीब 1000 करोड़ की भारी कटौति की गई है ।  कृषि उन्नति योजना ।इन ,300 करोड़ की कटौती की गई है और नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट में दो करोड़ रुपए कृषि विज्ञान केंदर में चार  करोड़ और यूरिया सब्सिडी में 40 करोड़ की कटौती की गई है। 

इसके इलावा प्रधानममंत्री की 2024-25 में की गई अभ्यूदय  योजना की घोषणा जो समाज के वँचित वर्ग की आय बढ़ाने गरीबी कम करने आश्रय भोजन आदि के लिए बनाई गई थी 2024-25 में इस योजना के लिए 2 हजार 140 करोड़  का प्रवधान किया गया था परन्तु जब इसको 48 लाख 21 हजार करोड़ से जोड़ा गया तो पता चला किंये बजट का 0.04 प्रतिशत है और उसके बावजूद भी इसका आधा भी खर्च नहीं हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में। हम पहले भी जिक्र कर चुके है की  शिक्षा के क्षेत्र में इस सरकार की कोई इच्छा नहीं है ,इसका आकलन आई आई  टी आई आई एम आदि के बजट से हम लगा सकते है । परन्तु यदि  फिर भी हम स्कालरशिप योजना की भी बात करें तो पीएम  यंग अचीवर स्कालरशिप में 1 हजार  836 करोड़ का एलान हुआ इससे वँचित तपको  को ये लगने लगा था की ये योजना वँचित छात्रों। के भविष्य को बदल देगी परन्तु इस योजना का भी 500 करोड़ की राशि खर्च ही नहीं हो पाई। ये मात्र एक इस योजना की ही बात नहीं बल्कि पोस्टमेट्रिक स्कालरशिप योजना के नाम पर 6360 करोड़ घोषित किया गया मगर असल में खर्च  5500 करोड़ ही हो पाया और 860 करोड़ गायब हो गया । आदिवसीयों के लिए 4300 करोड़ का बजट घोषित हुआ लेकिन खर्च का हिसाब देखा गया तो सिर्फ 3630 करोड़ ही खर्च हुआ। ये विश्लेषण मात्र पिछले 3 वितीय वर्षो का है। महामारी के दौरान बेहतरीन योजना मनरेगा के बजट को भी 2023 से लगातर कम किया जा रहा है । जो बजट 73000 हजार करोड़ के करीब था वो  60 हजार करोड़ के आस पास ला कर खड़ा कर दिया है। जोकि 18 प्रतिशत से भी अधिक कम हो गया है। 100 दिन की गारंटी वाली इस योजना में इस कारण लोगों को मात्र 42 दिन का हि काम मिल पा रहा है। इस योजना के लिए उम्मीद भी नहीं की जा सकती क्योंकि प्रधानमंत्री इस योजना को अलग अलग हथकंडे अपना का खत्म करना चाहते है।अगर देखा जाए तो अधिकांश इस योजना में दलित वर्ग और महिलाएँ  ज्यादा काम करती है।  अगर पिछले 3 वर्षों के बजट का और बजट 2025- 26 को देखा जाये तो ये बजट दलित वर्ग के अधिकारो पर हमला है, सरकार ने कॉर्पोरेट के मुनाफे बढ़ाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है आप अक्षत ऊर्जा को ही देख ले इस योजना में 900 करोड़ की वृद्धि और ऊर्जा के क्षेत्र में1000 करोड़ की वृद्धि, और पी एम सूर्य घर मुफ्त बिजली में ,730 करोड़ की वृद्धि कम्प्यूटर के सेमी कंडक्टर बनाना जिसका अनुसूचित जाति के बजट से कोई संबंध नहीं है उसमे ,260 करोड़ की वृद्धि, हार्डवेयर लिंकड इंसेंटिव के लिए 300 करोड़ की वृद्धि की गई ,इलेक्ट्रॉनिक एंड  इनफार्मेशन टेक्नोलोजी  में जिसमे अम्बानी का कब्जा है उसके बजट में700 करोड़ की वृद्धि करना मात्र कॉर्पोरेट को फायदा पहुँचाने  की मंशा से की गई , जबकि इन सबका अनुसूचित जाति वर्ग के बजट से कोई लेना देना नहीं है। जिस क्षेत्र में बजट मे वृद्धि करके वँचित वर्ग को फायदा हो सकता है उस क्षेत्र में वँचित वर्ग के बजट में निरंतर कटौती की गई। पिछले तीन  वर्षो। के बजट के आंकलन करने पर यही नजर आता है,वँचित वर्ग को मात्र वोट बैंक के तौर पर उपयोग किया जाता है  असल में इनके सामजिक आर्थिक सशक्तिकरण से सरकारों  को कोई वास्ता नहीं है । इस वर्ग के लिए सशक्तिकतीकरण के दावे मात्र चुनावी जन सभाओं तक ही सीमित होते है, धरातल पर इस वर्ग के लिए सरकार की कोई भी योजना नहीं है।

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